भारवि बदले की आग में जलते हुए अपने पिता की हत्या करना चाहता था। पिता की प्रताड़ना के पीछे उनकी मंगलकामनाओं का पता चलने पर वह लज्जित हो गया। उसने पिता से तलवार से उसका मस्तक काटने को कहा जिससे उसकी ग्लानि भी कट जाए। पिता कहते हैं कि पितृ-हत्या का दंड पुत्र-हत्या नहीं है। वे भारवि को क्षमा कर देते हैं। भारवि कहता है कि पाप के लिए न सही, उसके प्रायश्चित के लिए भी तो कुछ व्यवस्था होनी चाहिए। वह कहता है कि यदि आप चाहते हैं कि आपका भारवि जीवित रहे तो उसे दंड दीजिए। उसके पिता उसे छः मास तक ससुराल में जाकर सेवा करने तथा जूठे भोजन पर अपना पोषण करने का दंड देते हैं।