प्रस्तुत कविता के कवि हय, श्री केदाथि कोमल बूंद – बूंद से कविता आशा की किरण कैव्ता संग्रह से ली गयी है। आप हिन्दी के समकालीन कवियों में प्रसीद्ध है।
इस कविता में एकता में जो बल है उस पर जोर दिया गया है। सब के मिलने से ही हिन्दुस्थान है।
पानी का हर बूंद मिलकर अंत में वह बडा सागर बन जाता है। उसी तरह रूई का हर धाग मिलने से ही बडा से चादर बन पाता है।
हर पल हर मिनत मिलकर साल बन जाता है। अगर हम दृढ निश्चय के साथ रहेगे तो कितना भी कटिन संमस्या क्यों न हो उसको हट कट सामना कर सकते है। तभी तो हर समस्या हल हो सकती है।
पैसा – पैसा जुठाकर हम धनवान बन सकते है। थोडा – थोडा चलते चलते रहने से सारे हिन्दुस्थान को धूम समते है। हम हिन्दूस्थानी है। हम सव के साथ प्यार से बाते करते हुए, सब मिलकर अच्छे – अच्छे काम करने से हमारा देश खुशी से झूम उठेगा सम्रद्धि से हमारी धरती नाच उठेगी।