कबीर ने इस पंक्ति द्वारा यह सन्देश देना चाहा है कि व्यक्ति की महानता और सम्मान का मूल्यांकन उसकी जाति के आधार पर करना उसके साथ अन्याय है। उसके ज्ञान और मानवीय गुणों के आधार पर ही उसकी महानता का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। तलवार खरीदने वाला अनुभवी व्यक्ति, उसका मूल्य, उसके म्यान की सुन्दरता देखकर निश्चित नहीं करता। वह तलवार के लोहे की गुणवत्ता और उसकी धार के टिकाऊपन के आधार पर उसका मूल्य तय करता है। जाति तो साधु का म्यान है, उसमें रखी तलवार उसका ज्ञान है। उसे ही परखना चाहिए।