पाठ्यपुस्तक में संकलित सूर के पदों का अध्ययन करने के पश्चात् हमें ऐसा लगता है कि कवि ने गोपियों के माध्यम से ज्ञान और योग पर प्रेम और भक्ति को विजयी बनाया है। श्रीकृष्ण के सन्देशवाहक बनकर उद्धव ब्रज में आते हैं। गोपियाँ उनका स्वागत करती हैं। उन्हें आशा है कि कृष्ण ने अवश्य ही उनके हृदय को मुदित करने वाला कोई प्रेम सन्देश भिजवाया होगा, परन्तु उद्धव के मुख से योग और ज्ञान का सन्देश सुनकर उनके विरह व्यथित हृदय को बड़ी निराशा और क्षोभ होता है। योगी उद्धव नारी हृदय की भावनाओं और प्रेम के प्रभाव से अपरिचित हैं। अत: उनका सन्देश और उपदेश गोपियों के क्षोभ के निशाने पर आ जाता है। गोपियाँ अपने सहज तर्को, व्यंग्यों, करुण भावनाओं तथा उपहासों के प्रहार से उन्हें निरुत्तर कर देती हैं। “निर्गुन कौन देस को बासी ?” पद में ज्ञानियों और योगियों के तर्कों को अपनी भावनात्मक उक्तियों और प्रश्नों से धराशायी करके गोपियों ने योग और ज्ञान पर प्रेम और भक्ति की विजय ध्वजा फहरायी है।