सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि सूरदास के रचित पदों से लिया गया है। इस पद में बार-बार योग की चर्चा करने वाले उद्धव और उनके मित्र कृष्ण पर व्यंग्य करते हुए गोपियों ने मुक्ति पर भक्ति और प्रेम को भारी बताया है।
व्याख्या-गोपियाँ कहती हैं-उद्धव जी ! हमें कृष्ण से प्रेम करने पर कोई पछतावा नहीं है। हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू हैं। यदि हमारे निष्कपट प्रेम से प्रभावित होकर कृष्ण हमें फिर से दर्शन दें तो बहुत ही अच्छी बात है। यदि ऐसा नहीं भी हो तो भी संसार में उनका यश गाने का सुफल तो हमें मिलेगा ही। संसार देखेगा कि इस प्रेम प्रसंग में किसका कैसा व्यवहार रहा? हम तो गोकुल गाँव की ग्वालिन हैं। वर्ण और जाति दोनों में ही छोटी हैं। कृष्ण उच्च जाति के हैं। भला उनसे प्रेम करने का हमको क्या अधिकार था पर मथुरा की एक दासी, उन लक्ष्मी के स्वामी नारायण के अवतारे, कृष्ण के साथ बराबरी से एक पंक्ति में बैठी हैं। यह कैसा बड़प्पन हुआ? उद्धव!
आप तो ज्ञानी हैं। तनिक बताइए जिस परब्रह्म श्रीकृष्ण को वेदों के अध्ययन कर्ता, ध्यानस्थ योगी और ज्ञानी मुनि जन भी प्राप्त नहीं कर पाते, वे ही कृष्ण गोपों की बस्तियों में आकर क्यों रहे? केवल गोप-गोपियों की भक्ति और प्रेम के कारण वह निराकार-निर्गुण ब्रह्म सगुण साकार होकर इस ब्रजभूमि में अवतरित हुआ है। अब आप सब छोड़कर यही बता दीजिए कि आप जैसे ज्ञानी और योगी जिसे मुक्ति की प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयत्न करते रहते हैं, वह किसकी दासी है? वह भक्ति की दासी है। हम ब्रजवासी प्रेम और भक्ति के उपासक हैं। हमें मुक्ति की आकांक्षा नहीं। अब आपके पैर छूकर : हमारी यही प्रार्थना है कि आप अपनी योग कथा को बार-बार न सुनाएँ। हमारा तो स्पष्ट और दृढ़ मत है कि श्रीकृष्ण को छोड़ जो व्यक्ति किसी अन्य की उपासना करता है, वह अपनी माता को ही तुच्छ बनाकर लजाता है।
विशेष-
(i) गोपियों ने अपने तीखे व्यंग्यों और सहज तर्को से योग और ज्ञान पर भक्ति और प्रेम की श्रेष्ठता स्थापित की है।
(ii) ‘भगवान भक्त के वश में हैं, इस उक्ति की गोपियों ने इस पद में कठिन परीक्षा ली है।
(iii) भक्ति की दृष्टि से भगवान का अनुग्रह और प्रेम ही सर्वोपरि है। मुक्ति उसके लिए एक तुच्छ वस्तु है। यह भाव इस पद का मूल विषय है।
(iv) ‘ताकी जननी छार’ कथन से गोपियों का उद्धव के प्रति क्षोभ प्रकट हो रहा है।
(v) भाषा साहित्यिक और लाक्षणिक है। शैली व्यंग्यात्मक तथा तार्किक है।