रहीम बादशाह अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। उनकी विद्वत्ता, उदार हृदयता, वीरता, दानशीलता तथा कृतित्व से सभी लोग प्रभावित थे। संकलित दोहों से उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व और काव्य कौशल दोनों का परिचय मिलता है।
रहीम व्यवहारकुशल व्यक्ति थे। “रहिमन देखि…………….करै तरवारि॥” दोहे से उनके इस गुण का पता चलता है। बड़ों के साथ छोटों को भी महत्व देना चाहिए। सुई का काम तलवार नहीं कर सकती। रहीम एक विद्वान पुरुष थे। उन्हें अनेक भाषाओं का ज्ञान था और उनमें काव्य रचना का कौशल भी प्राप्त था। उनका अध्ययन बहुत व्यापक था। उन्होंने रामायण, गीता, पुराण तथा महाभारत आदि हिन्दू ग्रन्थों का भी अध्ययन किया था। वह एक उदार हृदय व्यक्ति थे। गुण ग्राहक और दानी थे। जीवन के हर पक्ष का उन्हें गहरा अनुभव था। ‘एकै साधे सब सधै’, ‘जैसी संगति बैठिए ………..दीन, काज परे ………सिरावत मौर’, ‘थोथे बादर…….पाछिली बात’, ‘बड़े बड़ाई ………मेरौ मोल’ आदि कथन उनके अनुभवों की व्यापकता का प्रमाण देते हैं।
एक कवि के रूप में भी रहीम बड़े लोकप्रिय रहे हैं। ब्रज भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार था। ‘नीति वचन’ जैसे नीरस विषय को भी उन्होंने बड़ी रोचक शैली में प्रस्तुत किया है। अपनी बात को दृष्टांतों तथा उदाहरणों से सिद्ध करने में वह कुशल हैं। अपनी रचनाओं में उन्होंने मानव-जीवन के विविध पक्षों, समस्याओं और भावनाओं को बड़ी कुशलता गुँथा है। आज भी उनका काव्य लोगों को प्रसंगिक और उपयोगी प्रतीत होता है।