कठिन शब्दार्थ- कागद = क़ागज। लिखत = लिखते। न बनत = नहीं हो पा रहा। लजात = लज्जा आती है। कहिहै = कहेगा। हियौ = हृदय॥
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि बिहारीलाल के दोहों से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने, प्रेमी को अपनी मनोभावनाएँ बताने को आतुर एक प्रेमिका को प्रस्तुत किया है।
व्याख्या-नायिका नायक को अपने मन की बात बताना चाहती है। उसके सामने समस्या है कि वह अपनी बात अपने प्रिय तक कैसे पहुँचाए। वह कागज पर अपनी मनोभावनाओं को नहीं लिख पा रही है और मुँह से कहने में लज्जा बाधा बन जाती है। वह कहती है कि यदि हमारा प्रेम सच्चा है तो नायक का हृदय उसके हृदय की बात को स्वयं ही जान जाएगा।
विशेष-
(i) कवि ने इस दोहे के माध्यम से आदर्श प्रेम-भावना का स्वरूप प्रस्तुत किया है।
(ii) लगता है पत्र द्वारा अपनी बात न बता पाने का कारण है कि विरहिणी जब लिखने बैठती होगी तो आँखों से आँसू टपकने लगते होंगे। कागज घुल और गल जाता होगा।
(iii) दोहे में कवि के काव्य के भावपक्ष का मर्मस्पर्शी स्वरूप व्यक्त हुआ है।
(iv) सरल शब्दों में हृदय को छू लेने वाली भावनाएँ साकार हुई हैं।