‘आत्म-परिचय’ एक प्रकार से कवि हरिवंशराय बच्चन के व्यक्तित्व को प्रकाशित करने वाले चलचित्र के समान लगता है। कवि ने इस रचना में अपने निजी और सार्वजनिक, दोनों ही जीवनों पर प्रकाश डाला है। बच्चन एक लोकप्रिय कवि रहे, यह बात निर्विवाद है। उनकी प्रारम्भिक रचना ‘मधुशाला’ ने कवि-मंचों से खूब बाहवाही बटोरी थी। धीरे-धीरे उनकी रचनाएँ गंभीर और जीवन के विविध क्षेत्रों को संबोधित करने वाली हो गईं।
‘आत्म-परिचय’ के आधार पर कवि बच्चन एक भावुक कवि तथा एक स्वतंत्र विचारक सिद्ध होते हैं। वह जगत से एक विशेष प्रकार का संबंध बनाना चाहते हैं। जग जीवन अपूर्ण है, मूढ़ है, दिग्भ्रमित है ऐसा मानते हुए भी वह उसे प्रेम का उपहार बाँटना चाहते हैं।
उनके अनुसार ज्ञान और बुद्धिमत्ता का अहंकार त्यागने पर ही सत्य को प्राप्त किया जा सकता है। इसके साथ कवि के अन्तर्मन की झलक भी इस रचना में दिखाई देती चलती है। कवि के हृदय में किसी की व्यथित कर देने वाली याद बनी रहती है। वह अपने स्वप्न जगत और मान्यताओं से संतुष्ट व्यक्ति है। उन्हें जगत के वैभव से कोई लगाव नहीं।
इस प्रकार कवि बच्चन का व्यक्तित्व बहुआयामी है। उनका संदेश भले ही हमें व्यावहारिक न लगे, पर एक मनमोहक लक्ष्य के रूप में स्वीकार हो ही सकती है।