असभ्य और जंगली जातियों में भय अधिक होता है। जंगली लोगों का परिचय-क्षेत्र बहुत सीमित होता है। ऐसी अनेक जातियाँ हैं जिनमें कोई व्यक्ति 20-25 से अधिक लोगों को नहीं जानता। उसे दस-बारह कोस दूर रहने वाला कोई जंगली मिल जाए और उसको मारने दौड़े तो वह दौड़कर अपनी रक्षा कर लेता है। यह रक्षा तत्कालीन तथा सर्वकालीन भी हो सकती है। परिचय का सीमित होना ही उनके भय का कारण होता है।
जंगली जातियों में भय की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। वे जिससे डरते हैं, उससे रक्षा के लिए ही उसका सम्मान भी करते हैं। उनके देवता भय के कारण ही कल्पित होते हैं। वे कष्ट से रक्षा के लिए किसी शक्ति की कल्पना कर लेते हैं तथा उसकी पूजा करते हैं और उससे प्रार्थना करते हैं कि वह उनको कष्ट से बचाए।
भय और भय उत्पन्न करने वाले का सम्मान करना असभ्यता का सूचक है। पूजा-पद्धति के जन्म में भी भय की भावना का प्रमुख स्थान है। देवता शक्तिशाली होते हैं तथा वे किसी को भी पीड़ा पहुँचा सकते हैं। इस पीड़ा से बचने के लिए ही उनका सम्मान किया जाता है। उनको प्रसन्न रखा जाता है तथा उनकी पूजा की जाती है। यही कारण है कि सभ्यता और शिक्षा के विकास के साथ धर्म के प्रति लोगों की रुचि कम होती जा रही है।