कठिन शब्दार्थ-आपदा = संकट। साक्षात्कार = आमना-सामना। आवेग = उत्तेजना। स्तम्भ-कारक = निर्णय लेने में अक्षम बनाने वाला। मनोविकार = मन के भाव। आकुल = विचलित। चेतन = सजीव। निर्दिष्ट = नियत, तय॥
सन्दर्भ व प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा रचित निबन्ध ‘ भय’ से उद्धृत है।’ भय’ शुक्ल जी का मनोविकार सम्बन्धी निबन्ध है। लेखक ने इसमें मानव मन के भय नामक भाव के बारे में बताया है तथा ‘क्रोध’ के साथ उसकी तुलना की है।
व्याख्या-लेखक कहता है कि जब मनुष्य का सामना किसी आने वाले अर्थात् भावी संकट या दु:ख की भावना से होता है तो उसके मन में एक मनोभाव उत्पन्न होता है जो उसके मन में उत्तेजना भरकर उसको स्तंभित कर देता है। उस मनोभाव को ‘भय’ कहते हैं। भय मनुष्य को दु:ख से बचने के लिए प्रेरित करता है। मनुष्य के मन का एक अन्य मनोभाव क्रोध है। क्रोध दु:ख के कारण को प्रभावित करने के लिए व्याकुल रहता है। जब तक दु:ख के कारण के स्वरूप का ज्ञान नहीं होता तब तक क्रोध उत्पन्न नहीं होता। क्रोध के उत्पन्न होने के लिए यह पता होना जरूरी है कि दु:ख किसके कारण उत्पन्न हुआ है। यदि दु:ख देने वाला कोई चेतनाशील प्राणी होता है तथा यह पता चलता है कि उसने जानबूझकर दु:ख पहुँचाया है तभी क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध का लक्ष्य हानि या दु:ख पहुँचाने वाला होता है। भय उत्पन्न होने के लिए यह जानना आवश्यक नहीं कि दु:ख पहुँचाने वाला कौन है, दु:ख का कारण कौन है? भय की उत्पत्ति के लिए इतना जानना ही अपेक्षित है कि दु:ख होगा अथवा हानि होगी। यह मालूम होते ही कि दु:ख होगा, भय उत्पन्न होगा और उससे बचने का उपाय भी किया जाएगा।
विशेष-
(i) भय क्या है, यह स्पष्ट किया गया है।
(ii) भावी दु:ख के विचार से क्रोध तथा भय नामक मनोविकार उत्पन्न होते हैं। दोनों के उत्पन्न होने की स्थिति पर विचार किया गया है।
(iii) भाषा संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त है तथा गम्भीर है॥
(iv) शैली विचार-विश्लेषणात्मक है।