हिन्दी कविता में महाकवि सूर को बाल-वर्णन का सम्राट माना जाता है। सूर ने श्रीकृष्ण की बाल-क्रीड़ाओं के माध्यम से बाल जगत के विशाल भाव वैभव को प्रत्यक्ष किया है। सुभद्रा जी ने केवल एक रचना द्वारा बाल जीवन के मधुर क्षेत्र में पदापर्ण किया है।
कवयित्री ने अपने और अपनी बेटी के बचपन को आधार बनाकर बाल-जीवन के सभी प्रश्नों को साकार किया है। बार-बार आती है” से कविता का आरम्भ करते हुए, बचपन की एक लघु किन्तु सर्वांगपूर्ण झाँकी प्रस्तुत की है। बाल-मनोविज्ञान तथा बाल क्रीड़ाओं से सुसज्जित यह अंश बाल-जीवन का बड़ा भावोत्तेजक चित्र प्रस्तुत करता है।
ऊँच-नीच, छुआछूत, महल-झौपड़ी, सुभग परिधान तथा चीथड़ों को समान भाव से स्वीकार करने वाला बचपन, इन पंक्तियों में खड़ा मुस्करा रहा है। दूध के कुल्ले करती और अँगूठे से अमृत को चूसती, यह एक नन्ही-सी परी की तस्वीर बड़ी मनमोहक है और वात्सल्य को उमगाने में पूर्ण सफल है।
माता और दादा का लाड़, आँसुओं की जयमाला से झाँकता, भोली मुस्कान बिखेरता एक छोटा-सा मुखड़ा, बालवर्णन के वैभव से मन को भाव विभोर कर देता है।
मेरे मतानुसार सुभद्रा जी की यह रचना बाल वर्णन एक सुन्दर नमूना है।