कठिन शब्दार्थ-आध्यात्मिक = ईश्वरीय। रंग महल = राजसी भवन। ब्रह्मज्ञानी = ब्रह्म को जानने वाला। मूक = जो बोल न सके। फकीरी = त्याग।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘मजदूरी और प्रेम’ शीर्षक निबंध से लिया गया है। इसके लेखक सरदार पूर्ण सिंह हैं। लेखक का कहना है कि शारीरिक श्रम ईश्वरीय नियम है। मनुष्य उसी के द्वारा जीवन में श्रेष्ठता प्राप्त कर सकता है। संसार के अनेक महान पुरुषों ने अपने जीवन में मजदूरी और फकीरी के समन्वय द्वारा ही उच्चता प्राप्त की है।
व्याख्या-लेखक का कहना है कि मजदूरी करना जीवन की यात्रा का एक ईश्वरीय नियम है। संसार में अनेक पुरुषों तथा महिलाओं ने इस नियम को मानकर उच्चता प्राप्त की है। ‘जोन ऑफ आर्क’ द्वारा भेड़ें चराना तथा फकीरी का जीवन जीना इसी का उदाहरण है। महान साहित्यकार टाल्सटाय त्यागी थे और जूते सिलने का काम करते थे। फारसी भाषा के प्रसिद्ध शायर उमर खैयाम खुशी-खुशी तंबू सिलाई का काम करते थे। खलीफा उमर अपने राजमहल में रहकर भी चटाई बुनते थे। कबीर ब्रह्मज्ञानी थे और रैदास नीची जाति के थे किन्तु वे ईश्वर के सच्चे और महान भक्त थे। गुरु नानक और भगवान कृष्ण पशुओं को चराने का काम करते थे। इस शारीरिक परिश्रम के कारण उनकी श्रेष्ठता में कोई कमी नहीं आई। इससे स्पष्ट है कि शारीरिक श्रम से ही सच्ची आध्यात्मिकता की शोभा होती है।
विशेष-
(i) शारीरिक परिश्रम से ही धार्मिकता तथा आध्यात्मिकता की शोभा बढ़ती है।
(ii) संसार के अनेक महापुरुष तथा महात्मा शारीरिक श्रम करने वाले रहे हैं।
(iii) भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली विवरणात्मक है।