कठिन शब्दार्थ-मिनिस्टर = मंत्री। प्रतिकूल = विरुद्ध। दखल देना = हस्तक्षेप करना। पालिसी = कार्य करने की नीति। पक्षपात = एक ही ओर की बात मानना, संतुलनहीनता। परम्परा = रीति। मर्यादा = सीमा। परित्याग = छोड़ देना।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ के ‘सफल प्रजातंत्रवाद के लिए आवश्यक बातें’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। यह डॉ. भीमराव अम्बेडकर को एक भाषण है। इस भाषण में डॉ. अम्बेडकर ने प्रजातंत्रीय शासन व्यवस्था की कुछ जरूरी बातों का उल्लेख किया है। इनको मानकर ही प्रजातंत्र सफल बनाया जा सकता है।
व्याख्या- डॉ. अम्बेडकर कहते हैं कि प्रजातंत्र में सरकार को नीति बनानी होती है। सरकार की नीतियों के संचालन का काम कार्यपालिका करती है। ब्रिटेन की प्रजातंत्रीय शासन व्यवस्था में कार्यपालिका का कोई अधिकारी सरकार के मंत्री की इच्छा के विपरीत सलाह दे सकता था किन्तु भारतीय प्रजातंत्रीय व्यवस्था में आज मंत्री की इच्छा के विरुद्ध किसी अफसर द्वारा कुछ कहना संभव नहीं लगता। उन दिनों जब डॉ. अम्बेडकर ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया’ के मेम्बर थे, भारत में भी ब्रिटेन की तरह यह बुद्धिमत्तापूर्ण नीति का पालन होता था कि सरकार शासन व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं करेगी। उसका काम हस्तक्षेप करना नहीं है। उसका काम केवल नीति तय करना है। उसका काम व्यवस्था में टाँग अड़ाना और एकपक्षीय कार्यवाही करना नहीं है। यह प्रजातंत्र के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण बात है। परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में शासक वर्ग इस रीति को छोड़ता जा रहा है। संभावना इस बात की भी है कि वह इस नीति को सदा के लिए छोड़ दे।
विशेष-
(i) प्रजातंत्र में सरकार नीतियाँ बनाती है। उसे कार्यपालिका के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
(ii) प्रजातंत्र में निष्पक्षता के साथ शासन करना आवश्यक है।
(iii) भाषा बोधगम्य है।
(iv) शैली विचारात्मक है।