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in सृजन - सफल प्रजातंत्रवाद के लिए आवश्यक बातें (भाषण का अंश) by (49.6k points)
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महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्याएँ।

मैं अपने मन में सोचता रहा हूँ, कि हम जो दक्षिण अफ्रीका की पृथक्करण की नीति के विरुद्ध इतना बाय-बेला मचाते हैं, जानते हैं कि हमारे हर गाँव में दक्षिण अफ्रीका है। वह वहाँ है-हमें केवल जाकर उसे देखने की जरूरत है। हर गाँव में दक्षिण अफ्रीका है, लेकिन तब भी मैंने शायद ही किसी को देखा हो जो स्वयं दलित वर्ग’ का न हो लेकिन तब भी ‘दलित वर्ग’ का पक्ष लेकर उठ खड़ा हो। क्यों? क्योंकि यहाँ ‘सार्वजनिक अन्तरात्मा’ नहीं है। यदि यही होता रहा तो हम ‘अपने में और अपने भारत में ही कैदी बने रहेंगे। अल्पमत वाले जो इस अन्याय के तले पिस रहे हैं, बहुमत वालों से कभी किसी प्रकार की सहायता न प्राप्त करेंगे, जिससे वे इस अन्याय से मुक्त हो सकेंगे। इन सबसे भी विद्रोह की भावना बढ़ती है, जिससे फिर प्रजातन्त्रवाद को खतरा पैदा हो जाता है।

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कठिन शब्दार्थ-पृथक्करण = अलग करना। बाय-बेला मचाना = शोरगुल करना, विरोध करना। दक्षिण अफ्रीका = एक देश, अन्यायपूर्ण नीति अपनाने वाला प्रदेश। दलित = पीड़ित, शोषित। विद्रोह = विरोध।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘सफल प्रजातंत्रवाद के लिए आवश्यक बातें’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। यह डा. भीमराव अम्बेडकर द्वारा दिया गया भाषण है।

डा. अम्बेडकर ने सार्वजनिक अंतरात्मा न होने का उदाहरण दिया है और बताया है कि दक्षिण अफ्रीका में गोरे-कालों के बीच जो भेदभावपूर्ण नीति अपनाई जाती है उसका विरोध गोरे लोग नहीं करते। इसी प्रकार भारत में भी दलित जातियों को अपने अन्याय के विरुद्ध स्वयं ही संघर्ष करना पड़ता है।

व्याख्या-डा. अम्बेडकर कहते हैं कि भारतीय दक्षिण अफ्रीका के गोरे-कालों के बीच भेदभाव पूर्ण नीति पर बहुत शोरगुल करते हैं। वे यह जानते हैं कि भारत में भी दक्षिण अफ्रीका जैसी भेदभाव पूर्ण नीति दलित जातियों के प्रति अपनाई जाती है। इसको किसी भी भारतीय गाँव में जाकर देखा जा सकता है। प्रत्येक गाँव में दक्षिण अफ्रीका है अर्थात् भेदभावपूर्ण नीति चल रही है। इस अन्यायपूर्ण नीति के विरुद्ध दलित वर्ग के पक्ष में कोई गैर दलित शायद ही खड़ा होता है। ऐसा इसलिए है कि हमारे यहाँ इस सम्बन्ध में सार्वजनिक अन्तरात्मा नहीं है। आशय यह है कि देश में इस अन्याय का भेदभाव मुक्त सार्वजनिक विरोध करने की कोई नीति ही नहीं है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो दलित जातियाँ अपने में तथा अपने देश भारत में सबके समान जीवनयापन नहीं कर सकेंगी तथा कैदी जैसा जीवन जीने को विवश होंगी। बहुसंख्यक लोगों से इन अल्पसंख्यक लोगों को कोई सहायता नहीं मिलेगी जिससे वे अन्याय से बच सकें। इन बातों से दलितों में भी विद्रोह की भावना पैदा होती है तथा प्रजातंत्र संकट में पड़ जाता है।

विशेष-
(i) दक्षिण अफ्रीका का मतलब है भेदभावपूर्ण नीति और व्यवहार का स्थान।
(ii) लेखक के अनुसार भारत में दलितों के साथ भेदभाव किया जाता है। यह प्रजातंत्र को संकट में डाल सकता है।
(iii) भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली विचारात्मक है।

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