चन्द्रमा निकलने पर आरामकुर्सी पर बैठकर लेखक हिमालय के शिखरों को देख रहा था। उसके मन में कविता की कोई भी पंक्ति उत्पन्न नहीं हो रही थी। यह छोटी बात थी। वह हिमालय की महानता के बारे में सोच रहा था । हिमालय उसको ऊपर उठने और महान् बनने की प्रेरणा दे रहा था। वह उसे स्नेहभरी चुनौती दे रहा था- हिम्मत है तो मेरे समान ऊँचे उठो, महान बनो।