लेखक अपने एक साथी के साथ नैनीताल से कौसानी के लिए बस से चला। उनको कोसी में उतरना था। वहाँ से शुक्ल जी को साथ लेकर कौसानी जाना था। कोसी तक का रास्ता बहुत ऊबड़-खाबड़, सूखा तथा कष्टप्रद था। बस का नौसिखिया ड्राइवर लापरवाही से बस चला रहा था। रास्ते में न पानी था, न हरियाली । लेखक तथा अन्य यात्रियों के चेहरे थकावट और परेशानी से पीले पड़े गए थे।
कोसी पहुँचने पर वे दोनों उतर गए। वहाँ शुक्ल जी तथा चित्रकार सेन उनसे मिले। वे सभी एक अन्य बस से कौसानी के लिए रवाना हुए। कोसी से 18 मील चले आने के बाद भी उनको बर्फ के दर्शन नहीं हुए थे। कौसानी यहाँ से छ: मील ही दूर था। लेखक से कौसानी की बड़ी तारीफ की गई थी। उसके मित्र ने उससे कहा था कि कौसानी कश्मीर से भी ज्यादा खूबसूरत है। गाँधी जी ने कहा था, कौसानी में स्विटजरलैंड का आभास मिलता है। परन्तु लेखक को कौसानी में प्राकृतिक सुन्दरता का कोई लक्षण दिखाई नहीं दे रहा था। अत: वह खिन्न हो उठा था। कौसानी के बस स्टैण्ड पर वह अन्यमनस्कता की मन:स्थिति में बस से उतरा। सहसा वहाँ कल्यूर की मनोरम घाटी को देखकर वह जड़वत् रह गया। यह घाटी अत्यन्त सुन्दर थी। उसके हरे-भरे खेत, गेरू की चट्टानों को काटकर बनाए गए लाल-लाल रास्ते, बहती हुई अनेक नदियाँ उसको अपूर्व मनोरमता प्रदान कर रहे थे। घाटी में दूर तक बादल छाये थे। उनके पीछे हिमालय छिपा हुआ था। सहसा उसको हिमालय की एक बर्फ से ढकी चोटी दिखाई दी। बर्फ देखने से वह अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसकी सारी थकान, असंतोष, खिन्नती और निराशा गायब हो गई। फिर बादल छंटने पर उनको बर्फ से ढंकी पर्वत श्रृंखला के दर्शन हुए। हिम-दर्शन की उनकी कामना, पूर्ण हो गई थी।