कौसानी की पर्वतमाला के अंचल में कल्यूर की रंग-बिरंगी घाटी छिपी थी। उसमें यह घाटी पचासों मील चौड़ी थी। अनेक हरे-भरे खेत, एक-दूसरे में मिलती अनेक नदियाँ, गेरू की चट्टानों से बने सफेद किनारों वाले रास्ते थे, जो उसकी सुन्दरता को बढ़ा रहे थे। यह घाटी इतनी सुन्दर, पवित्र और निष्कलंक थी कि लेखक का जी चाहा कि वह जूते उतारकर और अपने पैर पोंछकर उस पर कदम रखे। दूर क्षितिज के पास घाटी का सम्पूर्ण दृश्य नीले कोहरे में डूबा था। वहाँ लेखक को छोटे पर्वतों का आभास हुआ। इसके बाद बादल थे और कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
लेखक बादलों पर दृष्टि जमाये था कि सहसा उसको बादलों के हटने पर कुछ दिखाई दिया जो वहाँ अटल था। वह एक छोटे-से बादल के टुकड़े-सा कुछ था। उसका रंग सफेद, रूपहले तथा हल्के नीले रंग का मिश्रण था। लेखक ने सोचा, यह क्या है? फिर उसे ध्यान आया कि बादलों के पीछे हिमालय छिपा है। यह उसका एक छोटा बर्फ से ढंका शिखर है। यह देखकर वह प्रसन्नता से चिल्लाया-वह देखो बर्फ। बादल छंटने पर उसने देखा हिमालय की पूरी पर्वतमाला बर्फ से ढंकी थी और सुन्दर लग रही थी।