लेखक हिम से ढंके पर्वत-शिखरों को देखने कौसानी गया था। उसके साथ उसका उपन्यासकार मित्र, शुक्ल जी तथा चित्रकार सेन भी थे। कौसानी पहुँचने के बाद उन्होंने विस्तृत सुन्दर कल्यूर की घाटी में क्षितिज के पास एक छोटी बर्फ से ढंकी पर्वत-श्रेणी को देखा। बादलों के एक क्षण हटने पर वे अनायास बहुत कम समय के लिए उसको देख सके। इस हिम दर्शन का लेखक, शुक्ल जी तथा सेन पर अलग-अलग तरह का प्रभाव पड़ा। उपन्यासकार मित्रे पर क्या प्रभाव हुआ, इसका उल्लेख इस लेख में नहीं है।
लेखक को हिम शिखरे को देखने के बाद हल्का-सा विस्मय हुआ। फिर यह निश्चय होने पर कि वह बर्फ ही थी, वह हर्षातिरेक से चिल्ला उठा। उसकी खिन्नता, निराशा तथा थकावट सब छूमंतर हो गई। वह व्याकुल हो उठा और उसका हृदय धड़कने लगा । शुक्ल जी पर इसका कोई उत्तेजक प्रभाव नहीं पड़ा। वह शांत रहे। वह लेखक की ओर देखकर मुस्करा रहे थे। चित्रकार सेन बहुत प्रसन्न था। वह बच्चों की तरह चंचल हो उठा था और चिड़ियों की तरह चहक रहा था। वह रवीन्द्र की कोई की पंक्ति गा रहा था। सहसा वह शीर्षासन करने लगा और कहने लगा –
‘हम शीर का बल हिमालय देखता है।’
यदि मैं लेखक के साथ होता तो हिम-दर्शन का आनन्द शांत चित्त से लेता तथा शुक्ल जी की तरह नियंत्रित रहकर प्रसन्न मुद्रा में हिमदर्शन करता।