कठिन-शब्दार्थ-तमाम = सभी। खरोंच = चुभन। ईमान = धर्म, सच्चाई। शिखर = रेखा-चोटी का क्षेत्र। धुंधली = अस्पष्ट। दूधिया = सफेद। पिरा उठना = टीस पैदा होना।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘ठेले पर हिमालय’ शीर्षक निबन्ध (यात्रावृत्त) से लिया गया है। इसके लेखक डॉ. धर्मवीर भारती हैं। लेखक कह रहा है कि हिमालय की बर्फ का आकर्षण अत्यन्त प्रबल है। उसकी स्मृति दर्शक के मन में सदा रहती है। उससे दूर होने की एक टीस, एक चुभन उसके मन में बनी रहती है। लेखक के गुरुजन मित्र के मन में जो चुभन है, उससे लेखक परिचित है।
व्याख्या-लेखक कहता है कि ठेले पर लदी बर्फ की सिल्लियाँ देखकर उसके मित्र ने उसको हिमालय की शोभा कहा तो तत्काल लेखक को ‘ठेले पर हिमालय’ शीर्षक सूझ गया। फिर उसने उसके बारे में तरह-तरह की बातें सोची। जो बातें उसके मन में आईं वे सभी उसने अपने गुरुजन मित्र को बताईं। सुनकर वे हँसे किन्तु लेखक को लगा कि वह बर्फ उनके मन में कहीं चुभ गई है। जिसने पचास मील दूर से भी नीले आकाश में चन्द्रमा और तारों के प्रकाश में हिमालय के शिखरों पर जमी सफेद बर्फ को झिलमिलाते देखा हो तथा उसको चाँदनी में हलके नीले जल में दूध के समान सफेद समुद्र की तरह मचलते और जगमगाते देखा है, उसके मन पर हिमालय की बर्फ की एक खरोंच बनी रह जाती है। जब भी उसको हिमालय की बर्फ याद आती है तो उसके मन में एक टीस उठती है। यह एक सच्चाई है। लेखक कहता है कि वह इस सच्चाई से अपरिचित नहीं है, क्योंकि उसने इस बर्फ को स्वयं देखा है।
विशेष-
(i) हिमालय की बर्फ लेखक को आकर्षित करती है। याद आने पर वह उसके मन में टीस उत्पन्न करती है।
(ii) लेखक ने हिमालय के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया है।
(iii) भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली वर्णनात्मक तथा विवेचनात्मक है।