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महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ सहित व्याख्याएँ।

अनखाते हुए बस से उतरा कि जहाँ था वहीं पत्थर की मूर्ति-सा स्तब्ध खड़ा रह गया। कितना अपार सौंदर्य बिखरा था सामने की घाटी में। इस कौसानी की पर्वतमाला ने अपने अंचल में यह जो कल्यूर की रंग-बिरंगी घाटी छिपा रखी है, इसमें किन्नर और यक्ष ही तो वास करते होंगे। पचासों मील चौड़ी यह घाटी, हरे मखमली कालीनों जैसे खेत, सुंदर गेरू की शिलाएँ काटकर बने हुए लाल-लाल रास्ते, जिनके किनारे सफेद-सफेद पत्थरों की कतार और इधर-उधर से आकर आपस में उलझा जाने वाली बेलों की लड़ियों-सी नदियाँ। मन में बेसाख्ता यही आया कि इन बेलों की लड़ियों को उठाकर कलाई में लपेट लूँ, आँखों से लगा लूँ। अकस्मात् हम एक दूसरे लोक में चले आए थे। इतना सुकुमार, इतना सुंदर, इतना सजा हुआ और इतना निष्कलंक कि लगा इस धरती पर तो जूते उतारकर, पाँव पोंछकर आगे बढ़ना चाहिए।

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कठिन शब्दार्थ-अनखाते हुए = अन्यमनस्क होते हुए। स्तब्ध = क्षुब्ध होते हुए गतिहीन। किन्नर और यक्ष = जनजातियों की दो पुरानी प्रजातियाँ। कतार = पंक्ति। लड़ियाँ — पंक्तियाँ। लोक – संसार। निष्कलंक — पवित्र। बेसाख्ता = यकायक।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘ठेले पर हिमालय’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक डॉ. धर्मवीर भारती है। कुछ साथियों के साथ लेखक हिमदर्शन के लिए कौसानी जा रहा था। उसने कौसानी की प्राकृतिक सुन्दरता की बड़ी प्रशंसा सुनी थी। कोसी से बस चली तो वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था। इस कारण लेखक खिन्न था! वहाँ बर्फ का नामोनिशान भी नहीं था।

व्याख्या-लेखक कहता है कि वह बस से उतरा तो अत्यन्त खिन्न था। लेकिन सामने की घाटी में उसकी दृष्टि पड़ी तो देखा-वहाँ अपार प्राकृतिक सौन्दर्य भरा पड़ा था। कौसानी की पर्वत श्रेणी के बीच कल्यूर की तरह-तरह के रंगों से सुशोभित घाटी छिपी थी! लेखक ने सोचा कि प्राचीन-काल में इस घाटी में यक्ष और किन्नर नामक जनजातियों के लोग रहते होंगे। यह घाटी पचासों मील चौड़ी है। इसमें मखमल जैसे हरे-भरे खेत हैं, गेरू की सुन्दर चट्टानों को काटने से बने इसके रास्ते लाल हैं। इन रास्तों के किनारों पर पत्थरों की सफेद पंक्तियाँ हैं। इस घाटी में अनेक नदियाँ हैं जो इधर-उधर से आकर आपस में मिलती हैं। जैसे अनेक लतायें एक दूसरे से लिपट जाती हैं। लेखक ने अनायास सोचा कि वह इनको उठाये और अपनी कलाई में लपेट ले अथवा अपनी आँखों से लगा ले। अचानक लेखक इस संसार के बाहर किसी अन्य दुनियाँ में जा पहुँचा था। वह संसार इतना अधिक कोमल, सुन्दर, सुसज्जित और पवित्र था कि लेखक का मन हो रहा था। कि अपने जूते उतार ले और पैरों को पोंछकर ही उस भूमि पर पैर रखे।

विशेष-
(i) लेखक कौसानी की घाटी की सुन्दरता का वर्णन किया है।
(ii) कौसानी की प्राकृतिक सुषमा लेखक को मुग्ध कर रही थी।
(iii) भाषा में तत्सम शब्दों के साथ उर्दू के शब्द भी हैं।
(iv) शैली वर्णनात्मक तथा चित्रात्मक है।

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