कठिन शब्दार्थ- हिम-दर्शन = बर्फ देखना। खिन्नता = अन्यमनस्कता। छू-मंतर होना = गायब हो जाना। निरावृत्त = बेपर्दा, आवरणरहित। सौन्दर्य राशि = अपार सुन्दरता। चूँघट = पर्दा। दिल बुरी तरह धड़कना = जिज्ञासा से व्याकुल होना। अभिप्राय = आशय। मुँह लटकाना = दु:खी होना, बेचैन होना। जादू = प्रभाव।
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘ठेले पर हिमालय’ शीर्षक निबन्ध (यात्रावृत्त) से लिया गया है। इसके लेखक डॉ. धर्मवीर भारती हैं।
लेखक अपने कुछ मित्रों के साथ कौसानी के पर्यटन के लिए गया था। कौसानी की घाटी हिमालय की पर्वत श्रेणियों में स्थित थी। वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य अत्यन्त आकर्षक तथा पवित्र था। वहाँ उसने हिमालय की बर्फ को देखा। बादलों के हटने पर उसने उस बर्फ को देखा। यद्यपि उसको देखने का अवसर लेखक को थोड़े से समय के लिए ही मिला था। इसके बावजूद उसका मन प्रसन्नता से भर गया था। कुछ समय पहले उसमें जो निराशा, थकान और व्याकुलता थी, वह एक क्षण को बर्फ में देखने से दूर हो गई थी। अब उसके मन में यह व्याकुलता थी कि अभी थोड़ी देर में बादल हट जायेंगे और हिमालय उसको साफ-सार्फ दिखाई देगा। उसके ऊपर बादलों का पर्दा नहीं होगा। हिमालय का अपार सौन्दर्य उसके नेत्रों के सामने खुल जायेगा। इसके बाद उसको कैसा लगेगा-यह सोच-सोच कर वह बेचैन हो रहा था। शुक्ल जी शांत बैठे थे। वह कभी-कभी लेखक की ओर देखकर मुस्करा उठते थे। कौसानी आने से पहले लेखक बहुत खिन्न था। वह सोच रहा था कि कौसानी को सुन्दर बताकर उसको ठगा गया है। शुक्ल जी की मुस्कान इसी ओर इंगित कर रही थी। मानो वह कह रही थी-कौसानी पहुँचने से पहले ही तुम व्याकुल हो गए, उदास हो गए। देखा, कौसानी कितना सुन्दर और आकर्षक है!
विशेष-
(i) कौसानी का अप्रतिम प्राकृतिक सौन्दर्य दर्शक को मुग्ध कर देता है।
(ii) हिमदर्शन ने लेखक के मन की खिन्नता और निराशा दूर कर दी थी।
(iii) भाषा सरल, मुहावरेदार और प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली वर्णनात्मक है।