Use app×
Join Bloom Tuition
One on One Online Tuition
JEE MAIN 2025 Foundation Course
NEET 2025 Foundation Course
CLASS 12 FOUNDATION COURSE
CLASS 10 FOUNDATION COURSE
CLASS 9 FOUNDATION COURSE
CLASS 8 FOUNDATION COURSE
0 votes
1.8k views
in सृजन - ठेले पर हिमालय (निबन्ध) by (49.6k points)
closed by

महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ सहित व्याख्याएँ।

वे बर्फ की ऊँचाइयाँ बार-बार बुलाती हैं, और हम हैं कि चौराहों पर खड़े, ठेले पर लदकर निकलने वाली बर्फ को ही देखकर मन बहला लेते हैं। किसी ऐसे ही क्षण में, ऐसे ही ठेलों पर लदे हिमालयों से घिरकर ही तो तुलसी ने नहीं कहा था … कबहुँक हौं यहि रहनि रहौंगो…. मैं क्या कभी ऐसे भी रह सकूँगा वास्तविक हिमशिखरों की ऊँचाइयों पर? और तब मन में आता है कि फिर हिमालय को किसी के हाथ संदेशा भेज दूँ…. नहीं बंधु… आऊँगा। मैं फिर-लौट-लौट कर वहीं आऊँगा। उन्हीं ऊँचाइयों पर तो मेरा आवास है। वहीं मन रमता है… मैं करूँ तो क्या करूँ? 

1 Answer

+1 vote
by (50.5k points)
selected by
 
Best answer

कठिन शब्दार्थ- बर्फ की ऊँचाइयाँ = हिमालय के बर्फ से ढके उन्नत शिखर। रहनि = जीवन। मन रमना = मन लगना।

सन्दर्भ एवं प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘ठेले पर हिमालय’ शीर्षक यात्रा वृत्तान्त से उद्धृत है। इसके रचयिता डा. धर्मवीर भारती हैं।

लेखक कहता है कि जब उसको कौसानी के हिमावृत्त शिखरों की याद आती है तो उसके मन में एक तरह की पीड़ा जन्म लेती है। एक दिन पूर्व उसके उपन्यासकार मित्र ने ठेले पर लदी बर्फ की सिलों को देखा था तो हिमालय के हिम को स्मरण करके उनका मन भी दर्द से भर उठा था। लेखक उनके मन की पीड़ा को समझता है। वह बर्फ की उन सिलों को ‘ठेले पर हिमालय’ कहकर हँसता है। उसकी यह हँसी उस दर्द को भुलाने का एक बहाना है।

व्याख्या-लेखक बता रहा है कि हिमालय के बर्फ से ढंके शिखर लोगों को बार-बार बुलाते हैं। किन्तु वे वहाँ न जाकर चौराहे पर खड़े ठेले पर लदी हुई बर्फ की शिलाओं को देखकर ही प्रसन्न हो जाते हैं। कभी महाकवि तुलसीदास भी ऐसे ही ठेले पर लदे हिमालयों से घिर गए थे अर्थात् सांसारिक मोह-माया ने उनको अपने आकर्षण में जकड़ लिया था। उस समय उनसे मुक्त होने का विचार उनके मन में प्रकट हुआ था और उन्होंने प्रार्थना की थी कि वह भगवान राम की कृपा से इस मोह-माया से मुक्त जीवन जीने का अवसर पायेंगे। लेखक सोच रहा है कि क्या वह भी इसी तरह वास्तविक हिम शिखरों की ऊँचाइयों पर रह सकेगा? आशय यह है कि वह जीवन के चिरंतन सत्य को जान सकेगा? वास्तविक उन्नत जीवन की कामना से प्रेरित होकर हिमालय के पास संदेश भेजना चाहता है कि वह पुनः उसके पास आयेगा। वह हिमालय को स्वयं को आने का विश्वास दिलाता है। वह कहता है कि वह बार-बार वहीं आएगा। उसका विश्वास उन ऊँचाइयों पर ही है, उसका मन वहीं लगता है। वह अपने मन को रोकने में असमर्थ है।

विशेष-
(i) हिमालय के श्वेत हिम से ढंके शिखरों के बहाने लेखक श्रेष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा दे रहा है।
(ii) तुलसीदास भी संसार के मोह से मुक्त होकर श्रेष्ठ और पवित्र जीवन जीना चाहते थे।
(iii) भाषा सरल है तथा विषयानुरूप भव्य है।
(iv) शैली भावात्मक है।

Related questions

Welcome to Sarthaks eConnect: A unique platform where students can interact with teachers/experts/students to get solutions to their queries. Students (upto class 10+2) preparing for All Government Exams, CBSE Board Exam, ICSE Board Exam, State Board Exam, JEE (Mains+Advance) and NEET can ask questions from any subject and get quick answers by subject teachers/ experts/mentors/students.

Categories

...