कठिन-शब्दार्थ-प्रकोष्ठ = कमरा। शोण = सोन नदी। तीक्ष्ण = तेज। प्रवाह = बहाव। वेदना = दर्द पीड़ा। पानी की बरसात = आँसू। कण्टक = आँसू। कण्टक = काँटे। शयन = सोना, लेटना। विकल = व्याकुल। दुर्गपति = किले का स्वामी, राजा। दुहिता = बेटी। तुच्छ = छोटी, उपेक्षित। निराश्रय = बेसहारा। विडम्बना = दुर्भाग्य।
सन्दर्भ एवं प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ‘ममता’ शीर्षक कहानी से उदधृत है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं।
कहानी की इन प्रारम्भिक पंक्तियों में कहानी की नायिका ममता का परिचय कहानीकार ने दिया है। एक मंत्री की पुत्री होने के कारण उसको सब कुछ सुलभ है किन्तु वह अत्यन्त दु:खी है।
व्याख्या-कहानी की नायिका ममता दुखी है लेखक उसका परिचय देते हुए कहता है कि वह युवती थी। वह रोहतास के किले के एक कमरे में बैठी थी। वहाँ से वह सोन नदी के पानी की तेज तथा गहरे बहाव को देख रही थी। वह विधवा थी। उसका यौवन उसी प्रकार उमड़ रहा था जिस प्रकार सोन नदी का बहता पानी उमड़ रहा था। ममता के मन में पीड़ा थी। उसके मस्तिष्क में विचारों की आँधी उठ रही थी। उसकी आँखों से आँसू टपक रहे थे। महल का सुख भी उसके मन में काँटों के समान चुभ रहा था। वह रोहतास के किले के स्वामी के मंत्री चूड़ामणि की बेटी थी। उसके लिए संसार में किसी चीज की कमी नहीं थी। किन्तु वह विधवा थी। संसार में हिन्दू विधवा को अत्यन्त छोटा तथा बेसहारा जीव माना जाता है। यह वैधव्य ही उसको पीड़ित कर रहा था। उसके इस दुर्भाग्य का अन्त होना संभव नहीं था।
विशेष-
(i) ममता कहानी की नायिका का कहानीकार ने उसे विस्तृत परिचय दिया है।
(ii) ममता यद्यपि एक मंत्री की बेटी है परन्तु उसका वैधव्य एक ऐसी पीड़ा है जिसका कोई अन्त नहीं है।
(iii) भाषा संस्कृतनिष्ठ तथा परिमार्जित है।
(iv) शैली वर्णनात्मक तथा चित्रात्मक है।