अन्नाहार के प्रति गाँधी जी की विशेष रुचि थी और उसके प्रति उनकी श्रद्धा बढ़ती जा रही थी। इस सम्बन्ध में उन्होंने सॉल्ट, हार्वर्ड विलियम्स, डॉक्टर मिसेज ऐना किंग्सफर्ड एवं डॉक्टर एलिन्सन की पुस्तकों के अतिरिक्त आहार विषयक अन्य पुस्तकें भी पढ़ीं। डॉ. एलिन्सन से वे अधिक प्रभावित हुए क्योंकि वे स्वयं अन्नाहारी थे और बीमारों को अन्नाहार की ही सलाह देते थे। इस कारण उनके जीवन में आहार विषयक प्रयोगों का महत्त्व बढ़ गया।
गाँधीजी के एक मित्र उनके प्रति अधिक चिन्तित थे। वे चाहते थे कि गाँधी जी मांस खायें अन्यथा वे कमजोर हो जायेंगे, बेवकूफ कहलायेंगे और अंग्रेजों के समाज में घुल-मिल नहीं सकेंगे। एक दिन उनके मित्र उन्हें विक्टोरिया होटल में ले गये। उनके सामने जब सूप की प्लेट आई तो उन्होंने परोसने वाले से पूछ लिया कि इसमें मांस तो नहीं है। इस पर मित्र बहुत नाराज हुआ और गाँधी को होटल से बाहर आना पड़ा। उस रात गाँधी जी भूखे ही रहे, पर इस घटना का उनको मित्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
गाँधीजी ने सभ्य बनने का छिछला रास्ता अपनाया। उन्होंने सबसे पहले अपनी पोशाक बदली। आर्मी और नेवी स्टोर तथा बॉण्ड स्ट्रीट में कपड़े सिलवाये। दोनों जेबों में लटकने वाली सोने की बढ़िया चेन मॅगाई। चिकनी टोपी सिर पर पहनी। टाई बाँधना सीखा। बालों में पट्टी डालकर सीधी माँग निकालने में समय व्यय किया। बालों को बार-बार सँवारते और सिर पर हाथ फेरते।
इसके अतिरिक्त नृत्यकला सीखी, पियानो सीखा, भाषण कला सीखी, वायलिन सीखने का प्रयास भी किया। अन्त में बेल साहब की ‘स्टैण्डर्ड एलोक्यूशनिस्ट’ पुस्तक खरीदी। बेल साहब ने ऐसी घण्टी बजाई कि सभ्य बनने का विचार ही बदल गया। सारी कलाओं से मुक्ति पाई क्योंकि उन्हें इंग्लैण्ड में ही नहीं रहना था। उन्होंने सोचा मैं विद्यार्थी हूँ और मुझे विद्या धन बढ़ाना चाहिए। उन्होंने सदाचार से सभ्य बनने का निश्चय किया।