भारतीय जीवन मूल्य पाश्चात्य जीवन मूल्यों से भिन्न हैं। यहाँ सदाचार, सहयोग, स्वावलम्बन, समरसता जैसे संस्कारों की प्रधानता है। शान्ति निकेतन में गाँधी जी ने इन संस्कारों को जागृत करने का प्रयत्न किया। केशवराय देशपाण्डे के ‘गंगनाथ विद्यालय का वातावरण सामान्य विद्यालयों से भिन्न था। उनके विद्यालय में पारिवारिक भावना अधिक थी। प्रत्येक अध्यापक को आदरसूचक नाम दिया जाता था। कालेलकर को ‘काका’ का नाम इसी विद्यालय में मिला था । स्वयं देशपाण्डे को ‘साहब’ कहकर पुकारा जाता था। ऐसी समरसता अन्य विद्यालयों में देखने को नहीं मिलती थी।
सहयोग और समरसता का उदाहरण शान्ति निकेतन में भी देखने को मिला। शान्ति निकेतन में गाँधी जी ने देखा कि वहाँ वैतनिक रसोइयों द्वारा भोजने बनाया जाता था। उन्हें यह अच्छा नहीं लगा। वहाँ उन्होंने स्वपरिश्रम की चर्चा की। उन्होंने यह प्रस्ताव रखा कि वैतनिक रसोइयों की अपेक्षा शिक्षक और विद्यार्थी अपनी रसोई स्वयं बनायें तो अच्छा रहेगा। आरोग्य और नीति की दृष्टि से रसोईघर पर शिक्षक समाज का प्रभुत्व रहेगा और विद्यार्थी स्वावलम्बन तथा स्वयं पाक का पदार्थ पाठ सीखेंगे। गाँधी जी का यह प्रस्ताव स्वीकार हो गया और रसोई से सम्बन्धित कार्यों का अलग-अलग कार्य-विभाजन हो गया। पियर्सन ने इस प्रयोग को सफल बनाने के लिए बहुत प्रयत्न किया। एक मण्डली साग काटने का काम करने लगी। दूसरी मण्डली ने अनाज साफ करने का उत्तरदायित्व सँभाला। रसोईघर के आस-पास सफाई का कार्य नगेनबाबू आदि ने किया। पियर्सन हँसते-हँसते रसोई के काम में लगे रहते। बड़े-बड़े बरतन माँजना उन्हीं का काम था। कुछ विद्यार्थी सितार बजाकर मनोरंजन करते। फीनिक्स रसोईघर स्वावलम्बी बन गया। रसोई सादी और अच्छी बनने लगी। इस प्रकार शान्ति निकेतन में सहयोग और समरसता का वातावरण उत्पन्न हो गया जो भारतीय जीवन मूल्यों की बहुत बड़ी विशेषता है।