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in पीयूष प्रवाह - सत्य के प्रयोग (आत्मकथा अंश) by (49.6k points)
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‘सत्य के प्रयोग’ शीर्षक पाठ में संकलित अंशों में जिन सत्यों के प्रयोग का वर्णन किया गया है, उन्हें स्पष्ट कीजिए।

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उपर्युक्त पाठ के विभिन्न अंशों में गाँधीजी ने सत्य के अलग-अलग प्रयोग किये हैं। ‘सभ्य पोशाक में’ अंश में गाँधीजी ने यह सत्य जाना कि अन्नाहार जीवन में बहुत उपयोगी है। इससे विभिन्न बीमारियों का इलाज हो जाता है, वे स्वयं अन्नाहारी थे और डॉ.एलिन्सन ने उनके विचार की पुष्टि कर दी। दूसरा सत्य यह जाना कि सभ्य बनने के लिए व्यर्थ समय व्यतीत नहीं करना चाहिए। विद्यार्थी का काम विद्या-धन ग्रहण करना है। गाँधी ने दोनों सत्यों का अपने जीवन में प्रयोग किया और सफलता प्राप्त की।

‘बलवान से भिड़न्त’ अंश में गाँधीजी ने अन्याय से डटकर मुकाबला करने की हिम्मत बाँधने का प्रयोग किया। भ्रष्ट अधिकारियों के प्रति प्रमाण एकत्रित किये। पुलिस कमिश्नर का सहयोग प्राप्त किया। किन्तु गोरों का पक्षपात करने वाली जूरी ने उन्हें अपराध मुक्त कर दिया। गाँधी ने यह सत्य जाना कि पक्षपात के सामने सत्य प्रमाणों को कोई महत्व नहीं है। उन्होंने अपराधियों के प्रति सहानुभूति दिखाई और यह जाना कि भले-बुरे काम करने वालों के प्रति सदा आदर और दया रखनी चाहिए। उन्होंने एक प्रयोग यह भी किया कि व्यवस्था और पद्धति से नहीं झगड़ना चाहिए। व्यवस्थापक के विरुद्ध झगड़नी अनुचित है क्योंकि उसमें अनन्त शक्तियाँ निहित हैं।

‘आत्मिक शिक्षा’ में इस सत्य को जानने का प्रयत्न किया कि आत्मा की शिक्षा कैसे दी जाए। विद्यार्थी को अपने धर्म के मूल तत्वों का ज्ञान होना चाहिए। उन्होंने यह जाना कि आत्मा के विकास का अर्थ है-चरित्र का निर्माण करना। उन्होंने यह सत्य प्रकट किया कि आत्मज्ञान चौथे आश्रम की बात नहीं है। आत्मिक शिक्षा पुस्तकों से नहीं दी जा सकती। वह अध्यापक के आचरण पर निर्भर करती है। उन्होंने एक सत्य और जाना कि मारपीट से विद्यार्थी को नहीं पढ़ाया जा सकता। एक ऊधमी विद्यार्थी को रूल से पीटकर उन्हें दुख हुआ। वे काँपने लगे। इसका उन्हें पश्चात्ताप भी रही । उनका यह प्रयोग यथार्थ है।

शांति निकेतन में गाँधीजी ने जीवनमूल्यों से ओत-प्रोत संस्कार, सहयोग एवं समरसती के सत्य को उद्घाटित किया है। उन्होंने यह सत्य जाना कि यदि विद्यालय में पारिवारिक सम्बन्ध है तो विद्यालय अधिक उन्नति करेगी। गंगानाथ विद्यालय से उन्होंने इस सत्य को जाना। शान्ति निकेतन में एक प्रयोग और किया, वह यह कि वैतनिक रसोइयों के स्थान पर विद्यार्थी और शिक्षक स्वयं पाक का कार्य करें तो अध्यापकों को प्रभुत्व स्थापित होगा। गाँधीजी का यह प्रयोग पूर्ण सफल रहा और सभी ने बड़ी रुचि से अपना-अपना कार्य किया। इससे छात्रों में स्वावलम्बन की भावना जागी। सहयोग और समरसता के भाव जगे।

‘खादी का जन्म’ अंश में स्वावलम्बन एवं स्वदेशी की भावना पर जोर दिया गया है। यदि चरखा और करघे का प्रयोग किया। जाए तो देश की कंगाली दूर हो सकती है और पराधीनता समाप्त हो सकती है। देशी मिल के सूत का कपड़ा पहनने का निश्चय किया गया। यद्यपि इसके लिए दूसरों का सहयोग लेना पड़ा। मगनलाल गाँधी ने करघा चलाने की कला सीखी, नये-नये बुनने वाले भी तैयार किये गए। सभी ने हाथ से सूत कातने का निश्चय किया, क्योंकि इसके बिना पराधीनता दूर नहीं हो सकती थी।

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