भास्तीय नारी का सर्वस्व उसका पति होता है। वह उसे ही अपना आराध्य मानती है। प्रस्तुत अंश में रत्नावली का चित्रण एक आदर्श भारतीय नारी के रूप में हुआ है। रत्नावली तुलसीदास के मार्ग में बाधक नहीं बनती, बल्कि तपस्विनी भारतीय नारी के समान उनका साथ देती है। वह प्रबुद्ध है। भारतीय नारी लज्जाशील होती है रत्नावली जब पहली बार मठ में आई तो लज्जा से उसने पति की ओर देखा दोनों की आँखें मिलीं पर उसने कुछ कहा नहीं और आगे बढ़ी तथा पति तुलसीदास के चरणों में गिर गई। यह भारतीय नारी का आदर्श है। भारतीय नारी की तरह रत्नावली गंगा में स्नान करके मठ में लौट आई । भारतीय नारी अपने हाथ का बना भोजन पति को खिलाती है। रत्नावली भी रसोई में चली गई और पति के लिए अपने हाथ से भोजन बनाने लगी।
भारतीय नारी पति की साधना में बाधक नहीं बनती बल्कि सहायक बनती है। तुलसी रत्नावली की एक झलक देखना चाहते थे पर वह सतर्कतापूर्वक अपने को उनकी आँखों से बचाती रहती। कहीं तुलसी साधना से विचलित न हो जाएँ, इसलिए वह उनके सामने नहीं आना चाहती थी। पति के लिए पत्नी बहुत त्याग करती है। रत्नावली ने भी तुलसीदास के लिए बहुत त्याग किया। राजा भगत ने उनके त्याग की चर्चा इस प्रकार की-‘गाँव में तुम्हारी रुचि की रसोई बनाती है और किसी भूखे कंगले को खिलाती थी। आप बिना चुपड़ी, बिना सागभाजी के दो रोटी खाकर अपने दिन बिताती हैं। रोज तुम्हारी धोती धोना, तुम्हारी पूजा की सामग्री लगाना, तुम्हारे बैठक में झाड़ लगाना, तुम्हारी एक-एक चीज को सहेज-सँभालकर रखना, कहाँ तक कहें भैया, भौजी जैसी तपसिन हमने देखी नहीं। तुम घर से निकल गए पर उन्होंने अपनी भक्ति से तुम्हें अभी तक घर में ही बाँध रखा है। यह एक भारतीय नारी का आदर्श है जिसका प्रतिबिम्ब हमें रत्नावली में देखने को मिलता है। रत्नावली और तुलसीदास के मिलन के अवसर पर भी रत्नावली ने भारतीय नारी के आदर्श का परिचय दिया है। तुलसी ने उसे मठ से चले जाने का आदेश दिया। रत्नावली ने स्वीकार कर लिया किन्तु मृत्यु से पूर्व श्रीमुख दिखाने की भीख माँगी । भारतीय नारी भी अन्तिम समय में पति की निकटता चाहती है। उपर्युक्त सभी उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि रत्नावली में भारतीय नारी का प्रतिबम्ब विद्यमान है।