कठिन शब्दार्थ – कंत = पति। करश = शत्रुता। सन = से। परिहरहू = त्याग दो। हित = हितकारी, शुभ। हियँ = मन में। करहू = धारण करो, समझो। जासु = जिनके। दूत = संदेश सुनाने या देने वाला (हनुमान)। स्रवहिं = नष्ट हो जाते हैं, गिर जाते हैं। रजनीचर = राक्षस। घरनी = पत्नी। तासु = उनकी। सचिव = मंत्री। पठवहु = भेज दो। कुल कमल विपिन = वंशरूपी कमलों का वन। सीत निसा = शीत ऋतु की रात। हित = भलाई।। संभु = शिव। अज = ब्रह्मा। अहिगन = सर्यों का समूह। सरिस = समान। निकर = समूह। निसाचर = राक्षस। भेक = मेंढक। ग्रसत = पकड़ते, मुँह में दबाते। जतनु = प्रयत्न, उपाय। तजि = त्याग कर। टेक = अभिमान।
संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में ‘मंदोदरी की रावण को सीख’ नामक रामचरितमानस से संकलित प्रसंग से लिया गया है। इसके रचयिता महाकवि तुलसी दास हैं। इस अंश में मंदोदरी हनुमान द्वारा लंका दहन किए जाने के पश्चात् रावण से अनुरोध कर रही है कि वह सीता को आदर सहित राम के पास भिजवा दें।
व्याख्या – हनुमान द्वारा लंका को जलाए जाने से सशंकित और भीत मंदोदरी रावण से कह रही है-हे पतिदेव ! आप राम से शत्रुता त्याग दीजिए। मेरे कहने को अत्यन्त हितकारी समझ कर हृदय में धारण कर लीजिए। जिन राम के दूत हनुमान के लंका दहन को याद करके, राक्षसों को पत्नियों के भय के मारे गर्भ गिर जाते हैं। उनकी पत्नी सीता को, अपने सचिव को बुलाकर उनके समीप पहुँचवा दो। इसी में आपकी भलाई है। जिस सीता को तुम हरण करके ले आए हो वह आपके कुलरूपी कमलों के वन के लिए अत्यन्त दुःख देने वाली शीतकाल की अत्यन्त ठण्डी रात के समान है, जो तुम्हारे वंश को नष्ट करने के लिए आई है। हे स्वामी ! सीता को लौटाए बिना, भगवान शिव और ब्रह्मा भी आप की रक्षा नहीं कर सकते। हे नाथ! राम के बाण सर्यों के समान हैं और राक्षसों का समूह मेढ़कों के समान है। जब तक वे बाण राक्षसों के प्राण नहीं लेते, तब तक हठ त्याग कर अपनी और राक्षसों की रक्षा का उपाय कर लीजिए।
विशेष –
- मंदोदरी जान गई है कि राम कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। उनसे बैर करने पर, रावण और राक्षसों का विनाश निश्चित है।
- स्वयं नारी होने के कारण वह सीता से सहानुभूति भी रखती है। इसी कारण वह रावण से सीता लौटा देने की सीख दे रही है।
- भाषा साहित्यिक अवधी है।
- शैली उपदेशात्मक और भावात्मक है।
- ‘कंत करश’, ‘नारि निज’ ‘कुल कमल’, सीता सीत निसा सम’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘कुल कमल विपिन’ में रूपक तथा ‘सीता निसा सम’ में उपमा अलंकार भी है।