सराय या धर्मशाला यदि पहले से ही भरी है तो बाद में आने वाले यात्री स्वयं लौट जाया करते हैं। इस साधारण-सी बात को कवि ने अपने काव्य कौशल से असाधारण बना दिया है। कवि का भाव है कि मन बड़ा चंचल है। उसे प्रियतम प्रभु में लगाना सदा से टेढ़ी खीर रहा है। रहीम मन को प्रियतम में लगाने का बड़ा सरल उपाय बता रहे हैं-प्रियतम की छवि को नयनों में बसा लो। जब नयनों रूपी सराय में जगह ही नहीं बचेगी, तो मन के चंचल करने वाले पथिकरूपी विघ्न और आकर्षण अपने आप लौट जाया करेंगे। मन प्रभु में लगा रहेगा।