संकलित दोहों से कवि रहीम के काव्य-कौशल, वृहद अनुभव, व्यावहारिक ज्ञान, स्वाभिमान, व्यक्ति की पहचान आदि अनेक गुणों पर प्रकाश पड़ता है। मुसलमान होते हुए भी कवि रहीम की हिन्दू देवताओं में आस्था है। गंगा-स्तुति पर आधारित दोहा उनकी गंगा, शिव तथा विष्णु के प्रति उनकी भक्ति-भावना का उदाहरण है। स्वाभिमानी रहीम के विचार दर्शनीय हैं
अमी पियावत मान बिन, रहिमन मोहिन सुह्मय।
मान सहित मरिबो भलो, जो विस देहि बुलाय।
कवि को मान सहित मर जाना स्वीकार है, परन्तु अपमान का अमृत स्वीकार नहीं है।
कवि के विशाल अनुभव-कोश का एक नमूना देखने योग्य है।
कहि रहीम सम्पति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
विपति-कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।।
यह कवि का निजी अनुभव है। जब रहीम समृद्ध रहे, उनके चारों ओर मित्रों और संगों की भीड़ लगी रही और जब विपन्न हुए, वैभव छिन गया तो सारे मीत और सगे किनारा कर गए। रहीम का सारा जीवन उपकार करते बीता विशाल हृदय और खुले हाथों से बाँटते रहे। कभी लाभ या पुण्य के बारे में नहीं सोचा। उनकी मान्यता थी कि उपकारी तो मेंहदी बाँटने वाले के समान होता है। उसे किसी से सम्मान की अपेक्षा नहीं करनी पड़ती। उसके हाथों में तो यश की मेंहदी अपने आप रचती रहती है। इस प्रकार कवि रहीम का उदार व्यक्तित्व उनकी रचनाओं से झाँक रहा है।