कवि रहीम का भाव पक्ष ही नहीं कला पक्ष भी काव्य प्रेमियों को आकर्षित करता रहा है। संकलित दोहों में कवि ने अलंकारों के प्रभावशाली प्रयोग में अपनी दक्षता का परिचय दिया है। प्रथम दोहे में ‘सिव सिर मालति माल’ में उपमा है। ‘बनत बहुत बहु रीत’ में अनुप्रास है। ‘विपति कसौटी’ में रूपक है। ‘काज परे ……. सिरावत मौर’ में दृष्टान्त है। खैर, खून, खाँसी, खुसी में अनुप्रास ‘जो रहीम उत्तम…..सकत कुसंग’ में दृष्टान्त है। बारे उजियारो। …….. अँधेरों हाथ में श्लेष अलंकार है। इसी प्रकार ‘ धागा प्रेम का’ में कवि ने रूपक की छटा दिखाई। ‘गाँठि परि जाय’ में श्लेष का चमत्कार उपस्थित है। ‘पानी राखिए’ में श्लेष तथा ‘पानी गए न ऊबरै’ में श्लेष के साथ ‘पानी’ में यमक का सौन्दर्य भी उपस्थित है।’दृष्टान्त’ अलंकार के प्रयोग में तो कवि रहीम सिद्ध हस्त हैं। इस प्रकार कवि रहीम का अलंकार विधान बनावट और दिखावट से दूरी बनाते हुए पाठकों को आनंदित करने में सफल हुआ है।