कठिन शब्दार्थ – अच्युत = भगवान विष्णु। चरन = चरण, पैर। तरंगिनी = लहराने वाली। मालति = एक फूल। माल = माला। हरि = विष्णु। सुरसरी = गंगा। कीजौ = करना, बनाना। इन्दव भाल = जिनके मस्तक पर चन्द्रमा है, शिव। अमी = अमृत। मान बिनु = बिना सम्मान के। सुहाय = अच्छा लगना। मरिबौ = मरना। बिस = विष, जहर। बुलाय = बुलाकर।
सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में ‘दोहे’ शीर्षक के अन्तर्गत संकलित कवि रहीम के दोहों से लिए गए हैं। प्रथम दोहे में कवि गंगा से प्रार्थना कर रहा है कि वह उसका हरि न बनाकर शिव बनाने की कृपा करें ताकि वह उन्हें सिर पर धारण कर सकें। दूसरे दोहे में कवि ने अपमान सहित अमृत पीने की अपेक्षा मान सहितं विष पीना श्रेष्ठ बताया है।
व्याख्या – कवि रहीम परम पावन और सर्वसक्षम गंगा माता से प्रार्थना करता है कि आप भगवान विष्णु के चरणों में तथा भगवान शिव के सिर पर विराजती हैं। हे माता ! यदि आप कृपा करके मेरा उद्धार करें तो मुझे विष्णु नहीं शिव स्वरूप प्रदान करना, ताकि मैं आपके चरणों में रखने के पाप का भागी बनें। आपको अपने सिर पर धारण करने का सौभाग्य प्राप्त कर पाऊँ। द्वितीय दोहे में कवि ने आत्मसम्मान के साथ जीने की प्रेरणा दी है। कवि कहता है यदि कोई मुझे बिना उचित सम्मान के अमृत भी पिलाएँ तो मुझे वह स्वीकार नहीं होगा। यदि सम्मान सहित बुलाकर कोई मुझे विष भी पिलाए, तो मैं उस विष को पीकर सम्मान के साथ मरना स्वीकार करूंगा।
विशेष –
- मुसलमान होते हुए भी कवि रहीम ने हिन्दू देवी-देवताओं के प्रति भक्ति और आदर का भाव प्रदर्शित किया है।
- कवि को हिन्दू धर्मग्रन्थों का अच्छा परिचय प्राप्त है।
- शिव स्वरूप पाने के पीछे कवि ने रोचक तर्क दिया है।
- कवि ने संदेश दिया है कि अपमानपूर्वक सुखी जीवन जीने से समम्मान सहित मृत्यु का वरण करना ही श्रेष्ठ जीवन शैली है।
- ‘शिव सिर’ तथा ‘मालति माल’ में अनुप्रास अलंकार है।
- भाषा साहित्यिक ब्रजी है तथा कथन शैली चमत्कारपूर्ण तथा उपदेशात्मक है।