कठिन शब्दार्थ – ओछे = तुच्छ, नीच। स्वान = कुत्ता। भाँति = प्रकार। विपरीत = प्रतिकूल, अहितकर। धागा = डोरा। चटकाया = चट की आवाज के साथ, प्रथकता के विचार से। गाँठ = जोड़, अवरोध।
सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘दोहे’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता रहीम हैं। रहीम ने नीति सम्बन्धी प्रथम दोहे में नीचे मनुष्यों से तटस्थ रहने का परामर्श दिया है।
दूसरे दोहे में कवि ने संदेश दिया है कि प्रेम सम्बन्धों को असावधानीपूर्वक नष्ट नहीं करना चाहिए। एक बार प्रेम में व्यवधान होने पर उसमें पहले जैसी तन्मयता नहीं रह जाती है।
व्याख्या – कविवर रहीम कहते हैं कि मनुष्य को नीच स्वभाव के लोगों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में सावधानी से काम लेना चाहिए। उनके साथ न तो अथक प्रेम ही करना चाहिए और न उनसे बैर ही करना चाहिए। दोनों ही अवस्थाओं में वे दूसरों का अहित ही करते हैं। कुत्ता मनुष्य को काट लेता है तो उसको बहुत कष्ट होता है। वह मनुष्य के शरीर को चाटता है, तब भी छति होने का खतरा बना रहता है। उसका काटना तथा चाटना-दोनों ही मनुष्य के हित के प्रतिकूल होते हैं। कविवर रहीम कहते हैं कि प्रेम एक धागे के समान है। दूसरों के साथ अपने प्रेम के सम्बन्ध को हमें बिना विचारे असावधानीवश नष्ट नहीं करना चाहिए। प्रेम का सम्बन्ध टूटने पर दोबारा जुड़ता नहीं है। यदि जुड़ता भी है तो थोड़ा अवरोध तो रह ही जाता है। धागे को तोड़ने पर वह पहले की तरह नहीं जुड़ता, यदि जुड़ता भी है तो उसमें गाँठ लगानी पड़ती है।
विशेष –
- सरस, मधुर ब्रजभाषा है। दोहा छन्द में रचना है।
- कवि ने नीति विषयक बातें सरल ढंग से समझाई हैं।
- ओछे लोगों से प्रेम तथा शत्रुता का निषेध किया गया है तथा प्रेम के सम्बन्ध की सुरक्षा का आग्रह किया गया है।
- धागा प्रेम का’ में रूपक अलंकार है।
- प्रथम दोहे में दृष्टान्त अलंकार है।