कठिन शब्दार्थ – पानी = जल, मर्यादा, चमक। सून = शून्य, बेकार। पानी गए = पानी नष्ट होने, मर्यादा भंग होने, चमक मिटने। ऊबरे = उबरना, रक्षा होना। मानुष = मनुष्य। चून = चूना। प्रीतम = प्रियतम, प्रेमी। छवि = शोभा। पर = पराई, दूसरों की। समाय = स्थान प्राप्त होना। सराय = धर्मशाला। पथिक = यात्री। फिर जाय = लौटकर चला जाता है।
सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘दोहे’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता कविवर रहीम हैं। कवि ने प्रथम दोहे में बताया है कि मनुष्य को अपनी मान-मर्यादा के प्रति सतर्क रहने चाहिए। मर्यादाहीन मनुष्य को संसार में कोई नहीं पूछता।। कवि ने दूसरे दोहे में ईश्वर के सच्चे भक्त का लक्षण यह बताया है कि उसके नेत्रों में सदा ईश्वर की छवि रहती है। उसे छोड़कर वह सांसारिक वस्तुओं में आसक्त नहीं होता।
व्याख्या – कविवर रहीम कहते हैं कि संसार में पानी का बड़ा महत्त्व है। पानी को नष्ट नहीं होने देना चाहिए। सदा उसकी रक्षा करनी चाहिए। पानी के बिना सब कुछ अर्थहीन हो जाता है। पानी के अभाव में मोती, मनुष्य तथा चूना का महत्व घट जाता है। मोती का पानी अर्थात् चमक उतरने पर उसका सौंदर्य तथा मूल्य घट जाता है। मनुष्य का पानी अर्थात् मर्यादा नष्ट होने से समाज में वह सम्माननीय नहीं रह जाता। चूने का पानी सूख जाने पर वह प्रयोग के योग्य नहीं रह जाता है। कविवर रहीम कहते हैं कि जिस मनुष्य के नेत्रों में अपने प्रियतम परमात्मा की छवि विराजमान है, वहाँ किसी अन्य सांसारिक वस्तु का आकर्षण टिक नहीं पाता। अथवा जब कोई प्रेयसी अपने प्रेमी से अनन्य प्रेम करती है तो किसी अन्य पुरुष की सुन्दरता उसको आकर्षित नहीं कर पाती। जब किसी धर्मशाला अथवा सराय में कोई स्थान रिक्त नहीं होता तो यह देखकर वहाँ आने वाला यात्री स्वयं ही लौटकर चला जाता है। उसी प्रकार प्रियतम की छवि वाली आँखों में सांसारिक वैभव के प्रति आकर्षण नहीं पाया जाता।
विशेष –
- श्लेष अलंकार के प्रयोग द्वारा कवि ने पानी के तीन अर्थ चमक, मर्यादा तथा जल बताए हैं। मोती के लिए चमक, मनुष्य के लिए मर्यादा तथा चूने के लिए जल का होना आवश्यक है।
- कवि ने संदेश दिया है कि मनुष्य को अपनी मान-मर्यादा की रक्षा के प्रति सतर्क रहना चाहिए।
- अनुप्रास तथा श्लेष अलंकार है।
- दूसरे दोहे में ईश्वर के प्रति सच्ची लगन को भक्त के लिए आवश्यक बताया गया है।
- दृष्टान्त अलंकार है।
- दोहा छन्द है तथा सरस मधुर ब्रजभाषा है।