पद्माकर एक प्रतिभाशाली कवि थे। ये अत्यन्त स्वच्छ प्रवृत्ति के थे। वह जयुपर में कई वर्षों तक अत्यन्त ठाठ-बाट के साथ रहे। जब वह यात्रा पर जाते थे तो पूरा लाव-लश्कर उनके साथ रहता था। एक बार वह कहीं जा रहे थे। यह देखकर किसी राजा को भ्रम हो गया कि कोई अन्य राजा उसके ऊपर हमला करने आ रहा है। पद्माकर का स्वभाव ही ऐसा था कि उनको अनेक राजाओं के आश्रय में रहना पड़ा। जयपुर निवास के समय इनका किसी सुनार स्त्री से सम्बन्ध हो गया था। उनको कुष्ठ रोग भी हो गया था। जब वह चरखारी नरेश से मिलने गए तो उनके बारे में यह जानकर उन्होंने इनसे मिलना स्वीकार नहीं किया था।
पद्माकर कवि तथा लक्षण ग्रंथकार थे। आप ब्रजभाषा में सुन्दर कविता लिखते थे। आपकी कविता पर प्रसन्न होकर अनेक राजाओं ने आपको धन तथा जागीरें प्रदान की थीं। बताते हैं कि 56 गाँव, इतने ही लाख रुपये तथा इतने ही हाथी पद्माकर को विभिन्न राजाओं से प्राप्त हुए थे। पद्माकर ने सब मिलाकर नौ पुस्तकें लिखी थीं। राम रसायन, हिम्मत बहादुर विरुदावलि, जगद्विनोद, पद्माभरण इत्यादि उनमें से कुछ प्रमुख पुस्तकें हैं।