गंगा को सुरसरि कहते हैं। उसके सम्बन्ध में यह मान्यता प्रचलित है कि वह स्वर्ग में बहती थी। राजा भगीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाए थे। भगीरथ की तपस्या से गंगा प्रसन्न हुई और धरती पर आने को राजी हुई। उसने कहा-मेरा वेग प्रबल है। उससे तुम्हारा पृथ्वी लोक बह जाएगी। भगीरथ ने ब्रह्माजी को समस्या बताई। उन्होंने कहा-गंगा के वेग को कैलाशपति। शिव ही सम्भाल सकते हैं। तुम उनको मनाओ भगीरथ ने शिव की स्तुति की। शिवजी के तैयार होने पर ब्रह्माजी ने अपने कमण्डल से गंगा की धारा को छोड़ दिया और वह धरती की ओर दौड़ी। शिवजी ने उसको अपने जटाजूट में समाहित कर लिया। तब भगीरथ ने शिवजी को मनाया, शिवजी ने अपनी एक लट खोल दी। उसमें से गंगा की धारा निकली। भगीरथ का रथ आगे चल रहा था और उसके पीछे गंगा की धारा बही आ रही थी। इस प्रकार गंगा धरती पर आई। इस कारण गंगा को भागीरथी भी कहते हैं।