“कूरम पै कोल कोलहू पै सेस कुण्डली है। कुण्डली पै फबी फैल सुफन हजार की। त्यों फन पै फबी है भूमि” में कवि पद्माकर कहते हैं कि कछुए की पीठ पर धरती टिकी है। वाराह अवतार के अनुसार धरती को सूअर के मुख पर टिका माना जाता है। एक मान्यता यह भी है कि पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी हुई है। कवि पद्माकर ने इन कथाओं को उपर्युक्त पंक्तियों में आधार बनाया है। उन्होंने इन तीनों को पृथ्वी के कच्छप की पीठ, वाराह के मुख तथा शेषनाग के फन पर टिके होने की बात को एक साथ जोड़ दिया है और गंगा की शोभा को इन तीनों की शोभा से ऊपर तथा अधिक मनोहर बताया है।