‘यशोधरा’ के पठित काव्यांश में उसकी नायिका यशोधरा के चरित्र की विशेषताएँ व्यञ्जित हुई हैं। यशोधरा अपने पति से प्रेम करती हैं वह उनके प्रति पूरी तरह समर्पित है। उसने अपने जीवन में उसी काम को महत्वपूर्ण समझा है और वही किया जो उसके पति को मान्य रहा है। यशोधरा यह जानकर गौरव अनुभव करती हैं कि उसके पति सिद्धि पाने के लिए गए हैं। वह चाहती है कि वह सुखपूर्वक रहें और सिद्धि प्राप्त करें। वह यशोधरा के दुःख की चिन्ता करके दुःखी न हों।
इससे उसका नि:स्वार्थ प्रेम प्रगट होता है। यशोधरा की आत्मग्लानि तथा वेदना भी इस अंश में व्यक्त हुई है। उसके पति बिना उससे कुछ भी कहे चोरी-चोरी घर से चले गए। हैं, यह बात उसके संताप को बढ़ाने वाली है। उसने तो पति की प्रत्येक बात को माना था फिर ऐसा कारण क्या रहा कि उन्होंने उसकी उपेक्षा की। यह सोचकर यशोधरा-ग्लानि से भर उठती है तथा दु:ख के सागर में डूब जाती है। यशोधरा आशावादी है। उसको अपने पति की लक्ष्य-सिद्धि में पूर्ण विश्वास है। वह जानती है कि उसके पति से उसका पुनर्मिलन अवश्य होगा। जब वह आयेंगे तो उनकी अनुपम उपलब्धियाँ भी उनके साथ होंगी। इस प्रकार इस अंश में यशोधरा का पति से प्रेम, पति- भक्ति, आशावाद, आत्मग्लानि, क्षोभ तथा विरह, संताप आदि व्यक्त हुए हैं।