मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युग के कवि हैं। उस समय भारत में गाँधी जी के नेतृत्व में स्वाधीनता आन्दोलन चल रहा था। इसका प्रभाव राजनीति तक ही सीमित न था, वह भारत के समाज को भी प्रभावित कर रहा था, भारत के लेखक और कवि अपने साहित्य द्वारा लोगों को भारत की पुरातन संस्कृति से परिचित करा रहे थे तथा उनको अज्ञान निद्रा से दूर कर उनको जगा रहे थे। ऐसे कवियों में मैथिलीशरण गुप्त का प्रमुख स्थान है। उनके काव्य का भाव पक्ष सांस्कृतिक नवजागरण को संदेश देने वाला है। भारतीय संस्कृति और देशप्रेम गुप्त जी के काव्य के प्रमुख तत्व हैं। भारत की श्रेष्ठ पुरातन संस्कृति के वर्णन के साथ ही स्वदेश प्रेम की भावना उनके काव्य में पाई जाती है, जिसको स्वदेश से प्रेम नहीं है। कवि उसको मनुष्य मानने को तैयार नहीं है।
जिसको न निज गौरव तथा निज देश पर अभिमान है।
वह नर नहीं नर-पशु निरा है और मृतक समान है।
मानवतावाद की स्थापना गुप्त जी के साथ की अन्य विशेषता है। यह भी नवजागरण का एक लक्षण है। कवि का कहना है वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे’। समाज में प्रचलित बुराइयों को मिटाकर मनुष्य-मुनष्य के बीच के भेद-भाव मिटाकर तथा समाज में उच्चादर्शों और प्रेम का प्रसार, करके ही इस संसार को उन्नत बनाया जा सकता है। ‘साकेत’ में गुप्त जी के राम कहते हैं
संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया।
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।