शब्दार्थ – सिद्ध-हेतु = सफलता पाने के लिए। व्याघात = चोट, पीड़ा।
सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक से संकलित ‘यशोधरा’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता राष्ट्र-कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा तथा पुत्र राहुल को रात में सोता छोड़कर चुपचाप तपस्या करने के लिए घर से चले गए है। उनका इस प्रकार जाना यशोधरा को बहुत पीड़ा देता है। वह अपने कष्ट की बात अपनी सहेली को बता रही है।
व्याख्या – यशोधरा कहती है-हे सखि, मेरे पति तपस्या में सफलता पाने के लिए मुझे छोड़कर चले गए हैं। यह बात मुझे गौरव प्रदान करने वाली है, किन्तु वह मुझको बिना बताये चुपचाप चले गए, यह बात मुझे अत्यन्त चोट पहुँचा रही है। हे सखि, यदि वे मुझसे बताकर जाते तो मुझे इतना कष्ट न होता । तू ही बता, यदि वे मुझको बता देते तो क्या उनको सिद्धि के लिए जाने से रोकती ? मैं जानती । हैं कि उन्होंने मुझको बहुत माना है, किन्तु तब भी वह मुझे पूरी तरह पहचान नहीं पाए। मैंने कभी उनकी उपेक्षा नहीं की। जो बात उनको ठीक लगती थी, मैंने सदैव उसको ही अपनाया तथा महत्वपूर्ण माना। परन्तु वह मुझको बिना बताए ही चले गए। यदि वे मुझसे कहकर जाते तो मुझे इतनी पीड़ा न होती।
विशेष –
- उपर्युक्त पंक्तियों में यशोधरा की मार्मिक व्यथा का चित्रण हुआ है।
- यशोधरा सिद्धार्थ को बहुत चाहती है, उनका चुपचाप जाना उसको पीड़ा पहुँचा रहा है।
- अनुप्रास तथा पुनरुक्ति अलंकार हैं। गीतिकाव्य शैली है।
- भाषा सरल, सरस खड़ी बोली है।