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in सरयू - मैथिलीशरण गुप्त by (49.6k points)
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पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ।

नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते?
गये तरस ही खाते। सखि,
वे मुझसे कहकर जाते।

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शब्दार्थ – निष्ठुर = दयाहीन, निर्दय। सदय = दयालु।

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘यशोधरा’ शीर्षक कविता से उधृत है। इसके रचयिता मैथिलीशरण गुप्त हैं। यशोधरा के पति सिद्धार्थ गृह त्याग कर चले गए हैं। इससे दुःखी यशोधरा अपनी सखी से अपने संताप की चर्चा कर रही है। अपने पति को उसको बिना बताए चुपचाप चले जाना आहत कर रहा है।

व्याख्या – यशोधरा कहती है-हे सखि, मेरे नेत्र कहते हैं कि मेरे पति निर्दय हैं तभी तो वह बिना बताए चुपचाप चले गए हैं। किन्तु यह बात सच नहीं है वह अत्यन्त दयालु हैं। यदि वह मुझे बताकर घर से जाते तो मेरी आँखों से दु:ख के कारण आँसू बहने लगते। उन आँसुओं को दयालु हृदय वाले मेरे वह प्रियतम सहन नहीं कर पाते। मुझ पर तरस खाकर ही उन्होंने मझे कुछ नहीं बताया और वह चुपचाप चले गए। काश ! वह मुझ से कहकर वन के लिए प्रस्थान करते।

विशेष –

  1. गीति छन्द है।
  2. वियोग श्रृंगार रस है मानवीकरण अलंकार है।
  3. सरल, सरस तथा प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली है।
  4. यशोधरा को प्रतीत होता है कि चुपचाप जाकर भी सिद्धार्थ ने उस पर दया ही प्रदर्शित की है।

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