वर्तमान युग में आगे बढ़ने के लिए धन की आवश्यकता है न कि प्रतिभा की सृष्टि के समस्त ‘चराचरों में मानव को अखिलेश की सर्वोत्कृष्ट कृति कहा गया है। मानव अपनी बौद्धिक, मानसिक तथा चारित्रिक विशेषताओं के कारण सर्वश्रेष्ठ है। केवल मनुष्य ही उचित-अनुचित का निर्णय कर सकता है तथा अपने चरित्र के बल पर समाज को नई दिशा दे सकता है। समाज में उसकी प्रतिष्ठा का आधार कुछ मानवीय मूल्य थे जो केवल उसी में पाए जाते हैं। कहा भी है – ‘येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञान न शीलं न गुणो न धर्म: ते मृत्युलोके भुवि भारभूता मनुष्य रूपेण मृगाश्चरिन्त।’
परोपकार, दया, करुणा, मैत्री, सत्यनिष्ठा आदि चारित्रिक विशेषताओं के आधार पर समाज में मनुष्य की प्रतिष्ठा थी। बुद्ध, महावीर स्वामी, विवेकानंद, दयानंद, बाबा आमटे तथा प्रेमचंद जैसे अनेक उदाहरण इस बात का प्रमाण हैं कि केवल धन ही मनुष्य की प्रतिष्ठा का आधार नहीं होता। आज स्थिति बदल गई है। आज के युग में भौतिकता का बोलबाला है। नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है, प्रदर्शनप्रियता ही जीवन-शैली बन गई है। आज दुर्भाग्य से मनुष्य की प्रतिष्ठा का आधार मानवीय गुण न होकर धन-संपत्ति हो गए हैं। जिस व्यक्ति के पास धन-संपत्ति का अभाव है वह गुणी होते हुए भी समाज में आदर नहीं पाता। आज समाज में धनी की पूजा होती है। उसी का रुतबा है तथा हर जगह उसी की पूछ है। इससे बड़ी आश्चर्य की बात क्या हो सकती है कि धार्मिक स्थलों पर भी धनी का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। आज हमारी सोच एवं दृष्टिकोण इस हद तक दूषित हो चुके हैं कि नैतिक मूल्य नगण्य हो गए हैं। समाज में जिस प्रकार छल-कपट, बेईमानी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, तस्करी, कालाबाजारी जैसी बुराइयाँ बढ़ती जा रही हैं उसके लिए कहीं-न-कहीं धन का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
आज के समाज में हर स्तर पर धन का बोलबाला है। धर्म, राजनीति, शिक्षा, साहित्य जैसे सभी क्षेत्रों में धन के व्यापक प्रभाव को स्पष्ट देखा जा सकता है। धनी व्यक्ति अपने बालकों को अच्छे विद्यालयों में भेजते हैं, राजनीति में केवल धनी व्यक्ति ही प्रवेश कर सकते हैं। बड़े-बड़े समारोहों, उत्सवों एवं आयोजनों में धनिकों का ही गुणगान किया जाता है, जिसे देखकर इस कथन पर विश्वास करना पड़ता है – ‘सर्वेगुणा कांचनमाश्रयंति’ आज धन के आधार पर ही अमेरिका की तूती सारे विश्व में बोलती है।
यद्यपि धन के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता परंतु केवल धन ही मानवीय प्रतिष्ठा का आधार नहीं है। क्या मदर टेरेसा, महात्मा गांधी, लालबहादुर शास्त्री, निराला आदि की प्रतिष्ठा का आधार उनकी आर्थिक स्थिति अथवा धन-संपत्ति थी? इसी प्रकार के अनेक व्यक्तियों के नाम गिनाए जा सकते हैं जिन्होंने धन को कोई महत्त्व नहीं दिया लेकिन आज भी उनका नाम आदर सहित लिया जाता है। निष्कर्षतः केवल धन को ही मनुष्य की प्रतिष्ठा का आधार नहीं माना जा सकता। प्रतिभा एक ऐसा मौलिक व मानवोचित गुण है जिसके अभाव में हम जीवन व मानवता में उत्कर्ष पर कभी नहीं पहुँच सकते।