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‘निरंतर अभ्यास करने से इच्छित कार्य में सफलता मिलती है।’- इस कथन को अपने जीवन के किसी निजी अनुभव द्वारा विस्तारपूर्वक लिखिए।

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मानव जीवन में उन्नति के लिए जिन अनेक गुणों की आवश्यकता पड़ती है, उनमें सतत अभ्यास भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। सतत अभ्यास तथा परिश्रम के सहारे मूर्ख भी बुद्धिमानं बन जाता है। कहा भी है –

‘करत-करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान,
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान’

अर्थात् जिस प्रकार कुएँ से बार-बार पानी खींचने से पत्थर पर भी कोमल रस्सी चिहन छोड़ देती है, उसी प्रकार निरंतर अभ्यास से मूर्ख (जड़मति) भी चतुर (सुजान) बन जाता है। कवि वृंद के इस दोहे में अभ्यास के महत्त्व की ओर इंगित किया गया है।

व्यक्ति के जीवन में अभ्यास की भूमिका असंदिग्ध है। यह बात अनुभव-सत्य है कि पाषाण युग का आदिमानव अभ्यास के बल पर ही आज अंतरिक्ष युग में पहुँच सका है। अभ्यास के अभाव में व्यक्ति अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाता। वैज्ञानिकों ने सतत अभ्यास एवं परिश्रम के बल पर ही अनेक आश्चर्यजनक आविष्कार हमें प्रदान किए हैं।

प्रसिद्ध भारतीय हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद के संबंध में विदेशियों का मानना था कि उनकी हॉकी स्टिक में कोई जादू है, जिसके कारण गेंद उससे चिपककर चलती है, पर यह वास्तविकता नहीं थी। उनकी हॉकी एक सामान्य स्टिक मात्र थी। गेंद का स्टिक से चिपककर चलने का रहस्य थासतत अभ्यास। एक शिशु अभ्यास के बल पर ही लिखना-पढ़ना सीख जाता है। कालिदास जैसा महामूर्ख निरंतर अभ्यास के बल पर संस्कृत का सर्वश्रेष्ठ कवि बन सका, एकलव्य जैसा सामान्य भील बालक अभ्यास के बलबूते पर ही अर्जुन से भी श्रेष्ठ धनुर्धर बन गया। अनेक प्रसिद्ध कलाकारों, खिलाड़ियों, चित्रकारों, संगीतकारों, वैज्ञानिकों तथा साहित्यकारों की सफलता का रहस्य उनका सतत अभ्यास है। प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनि अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त कर लेते थे। इन्हें भी वे सतत अभ्यास के बल पर ही प्राप्त करते थे।

मैं अपने जीवन का एक निजी अनुभव बताना चाहता हूँ। आज मैं उत्तर भारत का सर्वोत्त्म अंडर नाइनटीन स्पिनर हूँ। प्रारंभ में मुझे गेंद डालने में घबराहट हुआ करती थी। मैं चौके-छक्के खाने से डरता था। परंतु, निरंतर अभ्यास ने मुझे एक घातक गेंदबाज बना दिया।

विदयार्थी जीवन भावी जीवन की आधारशिला है। जीवन के इसी काल में मानव जीवन की नींव बनती है। इसी काल में अच्छे या बुरे संस्कार विकसित होते हैं। इसी काल में विदयार्थी के लिए अभ्यास का बहुत महत्त्व होता है, क्योंकि अभ्यास के द्वारा वह विद्या प्राप्त कर सकता है तथा इसी ज्ञान के बल पर भावी जीवमे में उन्नति कर सकता है। ज्ञान की प्राप्ति निरंतर अभ्यास के द्वारा ही होती है। जो विद्यार्थी भाग्यवादी होकर अभ्यास से कतराता है, वह अपने लक्ष्य को कभी प्राप्त नहीं कर सकता। निरंतर अभ्यास से दक्षता, प्रवीणता तथा परिपक्वता आती है।

अभ्यास के बल पर मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी कमाल दिखाते हैं। सरकस में पशु-पक्षियों द्वारा दिखाए गए करतब सतत अभ्यास के ही परिणाम हैं। एक बार महान वैज्ञानिक एडीसन से किसी ने उसकी सफलता का रहस्य पूछा, तो उन्होंने कहा-“एक औंस बुधि और एक टन परिश्रम”। यह परिश्रम सतत अभ्यास ही तो था; अतः विद्यार्थियों को चाहिए कि वे ज्ञान प्राप्ति के लिए सतत अभ्यास करें और अपने गंतव्य तक पहुँचें। ‘अभ्यास’ प्रत्येक असफलता को सफलता में बदलने की अमोघ शक्ति रखता है।

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