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'साँच को आँच नहीं’ पर मौलिक कहानी लिखिए

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साँच को आँच नहीं (मौलिक कहानी) – महापुरुषों ने जीवन के महान् व गहन अनुभवों के आधार पर कुछ उक्तियाँ कही हैं, जो आज भी प्रामाणिक रूप से सत्य सिद्ध होती हैं। ऐसा ही यह कथन है कि “झूठ के पाँव नहीं होते” या “सत्य की कभी हार नहीं होती।” मुझे इस संबंध में एक कहानी स्मरण आ रही है जो इस प्रकार है :

बहुत समय पहले की बात है कि एक व्यापारी अफ़गानिस्तान से एक सुंदर घोड़ा खरीदकर अपने शहर लाहौर की ओर आ रहा था। घर से दस मील की दूरी रह जाने पर उसे थकान अनुभव हुई। उसने घोड़े को चरने के लिए छोड़ दिया और स्वयं एक पेड़ की घनी छाया में लेट गया।

घनी व शीतल छाया ने उस व्यक्ति के थके शरीर पर जादू जैसे मोहक मंत्र डाल दिया। वह क्षण भर में ही खर्राटे लगाने लगा।

थोड़ी देर में एक ठग उस मार्ग से निकल रहा था कि उसका ध्यान सुंदर घोड़े पर पड़ा।घोड़े के रूप ने उसका मन मोह लिया। व्यापारी अभी तक सो रहा था, मौका देखकर ठग ने घोड़े की लगाम को हाथ लगाया तो वह ज़ोर से हिनहिनाया। घोड़े की हिनहिनाहट सुनकर व्यापारी नींद से उठ बैठा। उठकर चारों ओर नज़र दौड़ाई। उसका वह कीमती व सुंदर घोड़ा कहीं दिखाई न दे रहा था। व्यापारी को कुछ न सूझ रहा था।

वह घबरा गया। घबराहट में ही वह एक पेड़ पर चढ़ने लगा और इधर-उधर देखने लगा कि उसका घोड़ा कहाँ है। थोड़ा और ऊपर चढ़ने पर उसने देखा कि कोई व्यक्ति उसके घोड़े की लगाम पकड़े चल रहा है। वह घोड़े पर सवार होने का बार-बार प्रयास कर रहा था परंतु सफल नहीं हो रहा था। व्यापारी नीचे उतरा और अपनी झोली उठाकर ठग के पीछे भागा।

ठग के पास जाकर व्यापारी ने ललकारा – “अरे दुष्ट ! ठहर, मेरा घोड़ा लिए कहाँ जा रहा है?”

“तेरा घोड़ा? तेरा कहाँ से हुआ? चल भाग, ठग कहीं का !” ठग बोला। बोलने के साथ ही उसने घोड़े को तेज़ खींचना शुरू कर दिया।

चलते-चलते दोनों पक्ष हाँफने लगे। शहर निकट आ रहा था। अचानक व्यापारी को एक चौक पर सिपाही खड़ा दिखाई दिया। वह झट से उसके पास जाकर फरियाद करने लगा कि उसका घोड़ा कोई ठग लिए जा रहा है। सिपाही ने आगे बढ़कर ठग को रोका और पूछा

“क्यों रे पाजी ! इस शरीफ़ आदमी का घोड़ा क्यों छीने जा रहे हो?”

ठग ने कहा कि यह झूठ बोल रहा है, घोड़ा मेरा है। सिपाही सच-झूठ का फ़ैसला नहीं कर पाया।

अंततः सिपाही घोड़े को पकड़कर बोला – “चलो थाने ! वहीं चलकर फैसला होगा कि घोड़े का वास्तविक मालिक कौन है।”

व्यापारी घबरा रहा था कि यदि थानेदार ने सबूत माँगा तो वह क्या दिखाएगा। उसे घोड़े की आदतों का भी पता नहीं।

थाने पहुँकर सिपाही ने दोनों को बरामदे में बैठने को कहा और घोड़ा थाने के पीछे बने घुड़साल में ले जाकर बाँध दिया। थानेदार को सूचना दी गई। सारी कथा कही गई। थानेदार अत्यंत प्रतिभाशाली, चतुर वह चेहरा पढ़कर हाल बताने वाला पारखी व्यक्ति था। उसने दोनों को बुलाया और दोनों की आँखों में आँखें डालते हुए प्रश्न पूछा कि घोड़ा किसका है? दोनों ने घोड़े को अपना बताया। थानेदार ने सिपाही के कान में कुछ कहा और फिर उन दोनों की ओर देखा और सिपाही से कहा – “जाओ, घोड़ा पेश करो।”

सिपाही घोड़ा लेकर आया तो उसके मुँह पर काला कपड़ा लपेटा हुआ था। थानेदार ने छूटते ही ठग से पूछा – “बता तेरे घोड़े की कौन-सी आँख बंद है- दाईं या बाईं?” ठग ने घबराकर तुरंत कहा – “हुजूर दाईं !” थानेदार ने घोड़ा व्यापारी को देते हुए ठग को कैद करने की आज्ञा दी क्योंकि घोड़े की कोई आँख बंद न थी। तभी कहते हैं कि साँच को आँच नहीं।

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