(i) प्रस्तुत कथन पुत्र-प्रेम शीर्षक कहानी में से लिया गया है। इस कथन का वक्ता वह युवक है जो चैतन्यदास को मणिकर्णिका घाट पर मिला था। उसी घाट पर प्रस्तुत कथन कहा जा रहा है।
(ii) वक्ता द्वारा यह कथन अपने दिवंगत पिता की अंत्येष्टि के संदर्भ में कहा गया था।
(iii) युवक यह कथन धन के प्रति उपयोगितावादी दृष्टि को स्पष्ट करता है। वह कहना चाहता है कि धन जीवन के लिए होता है न कि जीवन धन के लिए। चैतन्यदास ने धन के प्रति लालची दृष्टि अपनाई थी।
(iv) वक्ता युवक बताता है कि पैसा हाथ का मैल है “यदि जिंदगी है, तो कमा खाऊँगा, मन में यह लालसा तो नहीं रह गई कि पिता को बचाने में कुछ कसर नहीं छोड़ी” यह सुनकर बाबू चैतन्यदास अपने पुत्र की अंत्येष्टि पर हज़ारों रुपये खर्च कर डालता है।