(i) प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘सती’ शीर्षक कहानी में से ली गई हैं। इस कहानी की लेखिका शिवानी है। उन्हें प्रयाग स्टेशन से गाड़ी पकड़नी थी।
(ii) सफर में उस डिब्बे में लेखिका शिवानी के अतिरिक्त एक पंजाबी और एक मराठी स्त्री थी। गाड़ी चलने के समय उस डिब्बे में एक चौथी महिला ने प्रवेश किया जिसने स्वयं को मदालसा सिंघाड़िया के रूप में परिचित कराया। पंजाबी स्त्री विस्थापित महिलाओं के लिए बनाए गए एक महिला आश्रम की संचालिका थी और मराठी स्त्री किसी मेजर जनरल वनोलकर की पत्नी थीं।
(iii) लेखिका ने उपर्युक्त कथन पंजाबी स्त्री के संदर्भ में कहा है। उसे लगा कि उस पंजाबी स्त्री का घरेलू काम-काज या रख-रखाव से कोई लेना-देना नहीं था। उसके चेहरे पर एक अजीब खालीपन था। उसके हाथों की बनावट मर्दानी और पकड़ मज़बूत थी।
(iv) प्रस्तुत कथन पंजाबी महिला के विषय में कहा गया है। वह किसी मीटिंग में भाग लेने जा रही थी। उसके पास एक मोटी-सी फाइल थी जिसे वह बीच-बीच में खोलकर कुछ आँकड़ों को पहाड़ों की तरह रटने लगती थी। उसकी सलवार, कमीज़, दुपट्टा यहाँ तक कि रूमाल भी खादी का था और शायद उसी के संघर्ष से उसकी लाल नाक का सिरा और भी अबीकी लग रहा था। उसके चेहरे पर रोब था परंतु लावण्य नहीं। उसमें जीवन के उल्लास की एक-आध भी रेखा नहीं थी।