(i) ‘मैंने’ सर्वनाम का प्रयोग सुखिया के पिता के लिए हुआ है। वह सुखिया को बाहर जाकर खेलने से रोकता है क्योंकि बाहर महामारी फैली हुई थी। परंतु सुखिया कहाँ मानने वाली थी? अंततः वह भी महामारी से ग्रस्त हो गई। उसे ज्वर रहने लगा।
अतः पिता का डर सच सिद्ध हुआ।
(ii) सुखिया बीमार होते हुए भी घर में एक पल के लिए न ठहरती थी। उसका पिता उसे बाहर खेलने से रोकता था परंतु वह पिता का कहना नहीं मानती थी। उसके इस स्वभाव का फल यह हुआ कि वह महामारी की चपेट में आ गई। उसका शरीर बुखार से तपने लगा। उसने पिता से इच्छा व्यक्त की उसे देवी माँ के प्रसाद का एक फूल लाकर दिया जाए।
(iii) सुखिया की देवी माँ के प्रसाद का एक फूल पाने की इच्छा पूर्ण न हो सकी। वह उन दिनों की सामाजिक व्यवस्था में पाए जाने वाले जातिवाद की विध्वंसक व अमानवीय नीतियों का शिकार हो गई। सवर्णों ने उसके पिता को मंदिर परिसर में अमानवीय मार-पीट करके भगा दिया।
(iv) प्रस्तुत कविता में कवि ने धार्मिक अवधारणा की संकीर्णता पर व्यंग्य करते हुए जातिवाद को अमानवीय बताया है। छुआछूत एक भयंकर सामाजिक बुराई है। ईश्वर ने सभी मनुष्यों को एकसा बनाया है। एक परमपिता की संतानों में परस्पर भेदभाव तर्क से परे है। ईश्वर के समक्ष सभी समान हैं।