(i) प्रस्तुत पंक्तियों की वक्ता राजेंद्र यादव द्वारा रचित उपन्यास ‘सारा आकाश’ की नायिका प्रभा है। श्रोता उसका पति समर है।
(ii) जब वक्ता प्रभा ने बताया कि उसने पूजा में रखे गणेश को साधारण मिट्टी का ढेला समझकर उससे बर्तन माँज दिए, तो समर की भाभी ने बहुत ही हल्ला मचाया। वह सोचती है कि अब पूजा के अपमान पर कुछ अनिष्ट अवश्य होगा। इस पर समर ने प्रभा के चाँटा जड़ दिया।
(iii) चाँटा जड़ने के बाद समर को पश्चात्ताप होने लगता है। उसको दुःख था कि वह सात-आठ महीने से प्रभा के साथ बोल नहीं रहा था। इस लम्बे ‘अबोले’ के बाद वह पहली बार बोला,तो गाली और तमाचे के साथ।
(iv) समर का अपनी पत्नी से ‘अबोली’ चल रहा था। गणेश की मूर्ति से बर्तन माँजने के प्रसंग ने उसे इतना उत्तेजित व क्रुद्ध कर दिया कि प्रभा को तमाचा जड़ दिया और गाली भी दी। यहीं से समर की आत्मग्लानि का प्रकरण प्रारम्भ होता है। वह देर तक उस गाली व चाँटे के व्यवहार पर पश्चात्ताप करता रहा। उसे लगा कि औरत पर हाथ उठाना कतई ठीक नहीं था। यहीं से उसका हृदय-परिवर्तन शुरू होता है।