(i) उक्त संवाद मोहन राकेश कृत नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ के प्रथम अंक से लिया गया है। प्रस्तुत कथन अम्बिका अपनी पुत्री मल्लिका से कहती है।
(ii) उक्त कथन मल्लिका और कालिदास के प्रेम-प्रसंग को आधार बनाकर कहा गया है। मल्लिका कालिदास से भावना के स्तर पर बँधे होने की बात करती है। वह कहती है कि उसने भावना में एक भावना का वरण किया है। उसके लिए वह संबंध अन्य सभी संबंधों से बड़ा है।
(iii) उक्त संवाद द्वारा अम्बिका अपनी पुत्री मल्लिका को समझाना चाहती है कि कालिदास के लिए उसकी यह भावना एक प्रवंचना है। वह अपने अनुभव द्वारा पुत्री को लोक- व्यवहार समझाना चाहती है। वह कहना चाहती है कि इस प्रकार की भावनाएँ जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पातीं।
(iv) वक्ता अम्बिका एक ममतामयी माँ है। उसकी दृष्टि व्यावहारिक है। उसका सामाजिक मानदंडों और परंपराओं के प्रति मोह है। उसकी दूरदृष्टि और अनुभव नाटक में सत्य प्रमाणित होता है। वह मनोविज्ञान जानवी है। वह वत्सल भावना व लोकाचार से प्रेरित होकर पुत्री को कालिदास के प्रति अंध-प्रेम से रोकना चाहती है। परंतु इतने कष्टों से पाली गई मल्लिका उसकी सीख को उपेक्षित कर देती है और असीम कष्ट भोगती है।