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निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर, अन्त में दिए गए प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में लिखिए:-

ज्ञान-प्राप्ति के अनन्तर महात्मा बुद्ध ने अपना उपदेश सारनाथ में दिया। उसमें उन्होंने कहा-“जीवन के दो मार्ग हैं। एक मार्ग पर चलकर लोग सुख-साधनों को जुटाते हैं और भोगों से लिपटे रहते हैं। यह जीवन को सुखी नहीं बनाता। दूसरा मार्ग त्याग का है, तपस्या का है। इस पर चलकर लोग शरीर को कठोर यातनाएँ देकर भी अपने-आपको सुखी नहीं बना पाते। अतः ज्ञान-प्राप्ति के लिए, मानसिक सुख-शांति के लिए बीच . का मार्ग ही श्रेयस्कर है। बुद्ध का यही सिद्धांत मध्मय-मार्ग के नाम से प्रसिद्ध है। कहते हैं कि महात्मा बुद्ध

जहाँ बोदिवृक्ष के नीचे ध्यान-मग्न बैठे थे, उस मार्ग से एक भजन-मण्डली जा रही था। गीत की स्वर-लहरी वातावरण को गुंजित कर रही थी। सहसा समाधिस्त बुद्ध के कानों में गायिका के गीत के मधुर स्वर गूंज उठे’वीणा के तारों को ढीला न छोड़ो, नहीं तो उससे मधुर स्वर नहीं निकलेगा और न ही उन्हें इतना कसो कि वे टूट ही जायें।’ इन शब्दों से बुद्ध को मध्यम मार्ग की प्रेरणा मिली। उन्होंने अनुभव किया कि न तो भोगों से पूर्णतया तृप्ति हो सकती है और न ही भोगों को पूर्ण रूप से त्यागा जा सकता है। अतः जीवन के लिए भोग और त्याग के बीच का मार्ग ही श्रेयस्कर है।

महात्मा बुद्ध का चिंतन सरल और स्वाभाविक था। उनके मत में ऊँच-नीच का भेदभाव न था। राजा से लेकर रंक तक उनके लिए समान थे। उन्होंने धर्म के बाह्य आडम्बरों की अपेक्षा आन्तरिक शुद्धि पर बल दिया। यज्ञ में दी जाने वाली पशु-बलि का उन्होंने विरोध किया। जन-साधारण की भाषा में उन्होंने अहिंसा और प्रेम का जो उपदेश दिया उसने जादू का काम किया और देखते ही देखते लाखों नर-नारी उनके अनुयायी बन गये। 45 वर्षों तक उन्होंने घूम-घूम कर अपने अमृतमयी उपदेशों से जन-कल्याण किया।

महात्मा बुद्ध जीवन के 80 वर्ष पार कर चुके थे। शरीर दिन-प्रतिदिन क्षीण होता जा रहा था। अन्त में उन्होंने कुशीनगर की ओर प्रस्थान किया। कुशीनगर पहुँचते-पहुँचते उनका शरीर निढाल हो गया। उनके प्रिय शिष्य भिक्षु आनन्द ने शैय्या तैयार की। वह उस पर लेट गए। शिथिलता बढ़ती जा रही थी। निर्वाण की घड़ियाँ आ पहँची थीं। यह देख आनन्द की आँखों से आँस फूट पड़े। बोले-“देव! अब हमारा मार्ग दर्शन कौन करेगा?” बुद्ध ने आँखें खोली। बोले- “आनन्द! तुम्हारे सामने विशाल कर्म-क्षेत्र है। जरा, रोग और मृत्यु से त्रस्त मानवता को अंहिसा और प्रेम का मार्ग दिखाओ। क्यों भूलते हो संसार नश्वर है? जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म प्रकृति का अटल नियम है। रही मार्ग-दर्शन की बात। कौन किसका मार्ग-दर्शन करता है? कौन किसका मार्ग-दर्शन कर सकता है? “अप्प दीपो भव- अपना दीपक आप बनो।” यह कहते हुए तथागत सदा के लिए समाधिस्थ हो गए। वातावरण शोक से भर गया। तथागत के निष्पंद पार्थिव शरीर के चारों ओर खड़े भिक्षु आँसू बहा रहे थे। रह-रह कर उनके कानों में तथागत के शब्द गूंज रहे थे। “भिक्षुओ! मुझ पर विश्वास मत करना। मैं जो कहता हूँ उस पर भी इसलिए विश्वास मत करना कि मैंने कहा है। सोचना, विचारना और अपने अनुभव की कसौटी पर जो खरा उतरे वही करना।”

प्रश्न
(i) मध्यम-मार्ग से आप क्या समझते हैं? महात्मा बुद्ध को मध्यम-मार्ग की प्रेरणा कैसे मिली?

(ii) महात्मा बुद्ध के मत की क्या-क्या विशेषताएँ थीं कि देखते ही देखते लाखों नर-नारी उनके अनुयायी बन गए? 

(iii) महात्मा बुद्ध ने शोकाकुल भिक्षु को क्या उपदेश दिया? इससे हमें क्या शिक्षा मिलती है? 

(iv) महात्मा बुद्ध के निष्पंद पार्थिव शरीर के चारों ओर खड़े शोकाकुल भिक्षुओं के कानों में क्या शब्द गूंज रहे थे? इन शब्दों से क्या प्रेरणा मिलती है?

(v) ‘अप्प दीपो भव’ का क्या अर्थ है? ज्ञान-प्राप्ति के बाद महात्मा बुद्ध ने अपना उपदेश कहाँ दिया और उनका निर्वाण कहाँ हुआ?

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(i) मध्यम मार्ग का अर्थ है- ‘बीच का रास्ता।’ महात्मा बुद्ध जहाँ बोदिवृक्ष के नीचे ध्यान मग्न बैठे थे, उस मार्ग से एक भजन-मंडली जा रही थी। मंडली की गायिका जो गीत गा रही थी, उसका अर्थ था कि “वीणा के तार ढीले न छोड़ो, नहीं तो उससे मधुर स्वर नहीं निकलेगा और न ही इतना कसो कि वे टूट ही जाएँ।” बुद्ध को इसी से मध्यम मार्ग की प्रेरणा मिली।

(ii) महात्मा बुद्ध का चिंतन सरल व स्वाभाविक था। वे ऊँच-नीच का भेद मिटाकर समानता का सिद्धांत प्रचारित करते थे। उन्होंने धर्म के बाहरी आडम्बरों को छोड़ आंतरिक शुद्धि पर बल दिया। वे पशु-बलि का विरोध करते हुए अहिंसा और प्रेम का उपदेश देते थे। इससे लाखों नर-नारी उनके अनुयायी बन गए।

(iii) महात्मा बुद्ध ने भिक्षु आनंद से कहा-तुम्हारे सामने विशाल कर्मक्षेत्र है। जरा, रोग और मृत्यु से भयभीत मानवता को अहिंसा और प्रेम का मार्ग दिखाओ। संसार नश्वर है। जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म प्रकृति का अटल नियम है। यहाँ कोई किसी का मार्गदर्शक नहीं बन सकता। ‘अपना दीपक आप बनो।’ इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि मृत्यु और जन्म प्रकृति का अटल नियम है।

(iv) महात्मा बुद्ध के पार्थिव शरीर के चारों ओर खड़े शोकग्रस्त भिक्षुओं के कानों में ये शब्द गूंज रहे थे-“भिक्षुओ! मुझ पर विश्वास मत करना। मैं जो कहता हूँ उस पर भी इसलिए विश्वास मत करना कि मैंने कहा है। सोचना, विचारना और अपने अनुभव की कसौटी पर जो खरा उतरे वही करना। इन शब्दों से हमें प्रेरणा मिलती है कि उपदेशों को ज्ञान के आलोक में परख कर ही अपनाना चाहिए।

(v) ‘अप्प दीपो भव’ का अर्थ है कि अपना दीपक अर्थात्मार्ग दर्शक स्वयं बनो। महात्मा बुद्ध ने अपना उपदेश सारनाथ में दिया। उनका निर्वाण कुशीनगर में हुआ था।

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